घटना के संबंध में मृतक मरीज के परिजनो और घटना के चश्मदीद लोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पाकरगांव निवासी ऋषिकेश बारिक उम्र 45 वर्ष को किडनी में परेशानी रहने के कारण उसे हर सप्ताह डॉयलिसिस की जरूरत पड़ती थी। पत्थलगांव के सिविल हॉस्पिटल में वर्षो से डॉयलिसिस की सुविधा नहीं थी, जिसके कारण जनता द्वारा जनप्रतिनिधियों से हमेंशा सिविल हॉस्पिटल में डॉयलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की जाती थी, पिछले शासनकाल में सिविल हॉस्पिटल को डॉयलिसिस की मशीनें प्रदाय की गई और यह यहां के सिविल अस्पताल में यह सुविधा तो शुरू करा दी गई परंतु मरीजों का उसके बाद भी दुर्भाग्य दूर नहीं हुआ। पत्थलगांव के सिविल हॉस्पिटल में फैली अव्यवस्था किसी से छुपी नहीं है। आज भी बड़ी लापरवाही सामने आई, जब डॉयलिसिस के बीच में बिजली गुल हो गई तो मरीज के परिजन जैनरेटर र्स्टाट कराने के लिए हाथ पैर मारते रहे, परंतु सिविल हॉस्पिटल का लंबे समय से खराब जैनरेटर शुरू नहीं हो पाया। इस आभाव में एक युवक की जान चली गई।
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ऑक्सीजन की सुविधा भी नहीं मिली
मृतक के बडे़ भाई देवानंद बारिक ने बताया कि दोपहर के लगभग 2 बजे उसके छोटे भाई 40 वर्षीय ऋषिकेश बारिक का डॉयलिसिस शुरू किया गया था। उस दौरान यहां टैक्नीशियन ने डॉयलिसिस की प्रक्रिया शुरू तो कर दी, पर उसे संचालित करने का ठीक से अनुभव नहीं था। इसी बीच डॉयलिसिस की प्रक्रिया शुरू हुए कुछ ही देर हुई थी कि, अचानक से बिजली चली गई, जिसके बाद परिजनो ने हड़बड़ा कर सिविल हॉस्पिटल का जैनरेटर शुरू कराने के लिए हाथ पैर मारे, लेकिन लंबे समय से सिविल हॉस्पिटल के दोनो जैनरेटर का ठीक से रख-रखाव ना होने के कारण फषिकेश के बिगड़ते मामले में उसे जैनरेटर की सुविधा नहीं मिल पाई। जिसके बाद ऋषिकेश तड़पने लगा। उसे देखकर परिजनो ने ऑक्सीजन सिलेन्डर लगाने की मांग की। अस्पताल का टैक्नीशियन ऑक्सीजन सिलेंडर तो लाया पर उसके निपुल को वह नहीं खोल पाया। आखिरकार देर तक निपुल ना खुलने के कारण तड़पते हुए ऋषिकेश को बिजली के साथ-साथ ऑक्सीजन की भी सुविधा नहीं मिल पाई। अंत में उसने तड़प-तड़प कर अपने परिवार वालों के सामने अपने प्राण त्याग दिए। डॉयलिसिस करने के दौरान मृत ऋषिकेश बारिक के परिजन घंटो तक सिविल हॉस्पिटल के सामने हंगामा करते रहे। वे दोषियो पर कार्यवाही की मांग कर रहे थे। बाद में तहसीलदार उमा सिंह ने आकर परिजनो को समझाईश दी, उन्होंने तत्काल सिविल हॉस्पिटल में उस दौरान डयूटीरत डॉक्टर का रोजनामचा मंगाकर उसकी जांच शुरू कर दी। उन्होंने हॉस्पिटल की लापरवाही को लेकर बी.एम.ओ को भी फटकार लगाई। बताया जाता है कि डॉयलिसिस के दौरान लापरवाही का यह कोई पहला मामला नहीं था, इससे पूर्व भी लापरवाही का मामला सामने आ चुका है।