CG News: दरअसल, हाईटेक दुनिया में एक ओर जहां उद्योगों में अत्याधुनिक मशीनों का डंका बज रहा है। वहीं दूसरी ओर आज भी विलुप्तप्राय गधों की उपयोगिता बरकरार है। आपको बता दें कि, शिवरीनारायण तनौद, देवरी, नवागांव में ऐसे एक दर्जन से अधिक ईंट भट्ठा संचालित है, जहां मध्यप्रदेश के श्रमिक यहां आकर इन्हीं गधों के माध्यम से अपना पेट पाल रहे हैं।
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दरअसल, ईंट भट्ठों में श्रमिक ईंट बनाने के बाद चिमनी तक ढुलाई के लिए इन्हीं गधों को इस्तेमाल करते हैं। यहां बड़ी बात यह है कि गधे ईंट भट्ठों में ईंट की ढुलाई के लिए मशीन से अधिक तेज गति से काम करते हैं। उन्हें इशारे की भी जरूरत नहीं पड़ती। एक-एक गधों में एक खेप में 50 से 60 ईंट भरकर चिमनी तक छोड़ते हैं। दिन भर में एक गधों से 70 से 80 हजार तक ईंटों की ढुलाई की जाती है। एक ओर श्रमिकों के द्वारा बनाई गई लाखों ईंटों को पलक झपकते चिमनी तक छोड़ देते हैं।
CG News: डीजल पेट्रोल की बचत, केवल भूसा ही भोजन
मशीनी युग में एक ओर पेट्रोल डीजल की महंगाई से लोग उबर नहीं पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आज भी गधों का इस्तेमाल कर हर रोज लाखों रुपए के फ्यूल की बचत कर रहे हैं। ट्रेलर, डंपर, हाइवा, ट्रैक्टर जैसे मशीन का इस्तेमाल करने पर ईंट भट्ठा संचालकों को जहां लाखों रुपए खर्च करना पड़ता वहीं गधों से ईंटों की ढुलाई करने में मात्र चंद रुपयों की जरूरत पड़ती है। वह भी धान से निकले कोढ़ा व भूसे के इनका पेट भर जाता है। ईंट भट्ठा संचालकों के द्वारा ही इनकी भरपाई कर ली जाती है। इन जानवरों से मात्र सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक ही काम लिया जाता है। फिर गधे अपने बूते ही आसपास के इलाके में चरकर अपना पेट भर लेते हैं।