जालोर

दूर-दूर तक फैला है आहोर की रबड़ी का जायका

आहोर कस्बे में पिछले कई सालों से बनने वाली रबड़ी ने जिले में ही नहीं, लेकिन प्रदेश और प्रदेश से बाहर भी अपनी विशिष्टता के चलते काफी ख्याति प्राप्त की है। कस्बे के राठी बंधुओं ने रबड़ी बनाने में महारत हासिल की हुई है। यही कारण है कि कस्बे में सालों से बनने वाली रबड़ी की स्वादिष्टता दूर-दूर तक जानी जाती है।

जालोरApr 01, 2021 / 10:48 am

Dharmendra Kumar Ramawat

आहोर. पिछले कई दशकों से विख्यात रबड़ी का जायका लेते लोग। पत्रिका

जोगेश लोहार.आहोर. रबड़ी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। वैसे तो रबड़ी प्रत्येक छोटे-बड़े शहर में स्थित मिठाई की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है, लेकिन रबड़ी जैसी मिठाई में आहोर कस्बे ने बादशाहत हासिल कर रखी है। आहोर की रबड़ी का जायका दूर-दूर तक फैला हुआ है। आहोर कस्बे में पिछले कई सालों से बनने वाली रबड़ी ने जिले में ही नहीं, लेकिन प्रदेश और प्रदेश से बाहर भी अपनी विशिष्टता के चलते काफी ख्याति प्राप्त की है। कस्बे के राठी बंधुओं ने रबड़ी बनाने में महारत हासिल की हुई है। यही कारण है कि कस्बे में सालों से बनने वाली रबड़ी की स्वादिष्टता दूर-दूर तक जानी जाती है। कस्बे के राजकीय अस्पताल के सामने मुख्य सडक़ मार्ग स्थित मिठाई की दुकानों पर काफी मेहनत से रबड़ी तैयार की जाती है। रबड़ी का स्वाद लेने के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। कई प्रवासी रबड़ी पैक करवाकर अपने साथ दिसावर ले जाते हैं। कस्बे में विभिन्न स्थानों से आने वाले पर्यटक भी इस रबड़ी का स्वाद लिए बगैर नहीं लौटते। एक बार रबड़ी चखने के बाद इसका स्वाद कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
18 किलो दूध की बनती है साढ़े चार किलो रबड़ी
राठी बंधुओं के अनुसार कड़ी मेहनत व मशक्कत से रबड़ी को तैयार किया जाता है। कस्बे के रबड़ी निर्माता बताते हैं कि 18 किलो दूध से करीब साढ़े चार किलो रबड़ी बनती है। रबड़ी पूर्ण रूप से गाय के दूध से तैयार की जाती है। साढ़े चार किलो रबड़ी में मात्र 350 ग्राम शक्कर होती है। मिष्ठान में रबड़ी का क्रेज इन दिनों अत्यधिक बना हुआ है। जिसके चलते शादी समारोह समेत अन्य पार्टियों में इसकी मांग अधिक रहती है।
125 वर्ष पूर्व हुई थी आहोर में शुरुआत
कस्बे के रबड़ी निर्माता मुकेश राठी बताते हैं कि उनके परिवार की ओर से करीब 125 वर्ष पूर्व आहोर कस्बे में रबड़ी की शुरुआत की गई थी। पूर्व में उनकी मिठाई की दुकान कस्बे के भीतरी हिस्से में थी। अभी करीब 62 वर्ष से उनके प्रतिष्ठान राजकीय अस्पताल के सामने मुख्य मार्ग पर संचालित हैं। उनकी ओर से निर्मित रबड़़ी पिछले कई दशकों से दूर-दूर तक अपनी धाक जमाए हुए है।

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