18 साल में करंट से इतने कार्मिकों की हो गई मौत…
जालोर. जिले सहित प्रदेश भर में डिस्कॉम प्रशासन की कमजोर मॉनीटरिंग के चलते तकनीकी कर्मचारी बार-बार मौत से जूझ रहे हैं। कर्मचारियों का कहना है कि लाखों-करोड़ों में खरीदे जाने वाले सुरक्षा उपकरण मांग के बावजूद उन्हें समय पर दिए ही नहीं जाते। जिसके कारण बिना उपकरणों के ही कई बार उन्हें फील्ड में जाना पड़ता है और कई बार हादसों का शिकार भी होना पड़ता है। ये उपकरण अधिकारियों की अनदेखी के कारण सालों तक स्टोर में ही पड़े रहते हैं या फिर मानकों के मुताबिक खरीदे नहीं जाते। इसके बावजूद उन्हें समय पर सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2001 से अक्टूबर 2018 तक जयपुर, अजमेर और जोधपुर तीनों निगम में 10 हजार 92 लोग विद्युत हादसों का शिकार हुए। इनमें से 3727 डिस्कॉम के कर्मचारी थे, जबकि 6 हजार 365 आम लोग। बिजली संबंधी फॉल्ट निकालते समय हुए इन हादसों में 1114 कार्मिकों को जान से हाथ गंवाना पड़ा और २६१३ कार्मिक गंभीर रूप से घायल या अपंगता का शिकार हुए। इसी तरह इस अवधि में 4607 आम लोग भी बिजली की चपेट में आने से मारे गए और 1758 लोग घायल होने से आज भी लाचारी की जिंदगी जी रहे हैं।
10 साल में बांटा 37 करोड़ का मुआवजा
जोधपुर विद्युत वितरण निगम की ओर से बीते दस साल में वर्ष 2009-10 से 2018-19 तक हुए इन हादसों के बाद कार्मिकों और आमजन सहित काल कलवित हुए पशुओं के पालनहारों को 37 करोड़ 18 लाख 70 हजार रुपए का मुआवजा बांटा गया है। इसमें 14 करोड़ 10 लाख 21 हजार 627 रुपए डिस्कॉम कार्मिकों के परिवारों को, 21 करोड़ 21 लाख 62 हजार 134 रुपए आमजन को और 1 करोड़ 86 लाख 86 हजार 707 रुपए पशु मालिकों को मुआवजा दिया गया। इस तरह हादसों के बाद डिस्कॉम मुआवजा तो बांट रहा है, लेकिन हादसे रोकने के लिए तकनीकी कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने में अभी भी ढिलाई बरती जा रही है।
जोधपुर निगम की बीते 10 साल की स्थिति
वर्ष 2009-10 से 2018-19 तक की बात करें तो जोधपुर विद्युत वितरण निगम में विद्युत हादसों के दौरान 189 कार्मिकों की मौत हुई है और 539 कार्मिक या तो गंभीर रूप से घायल हुए या फिर अपंगता का शिकार हुए। इसी तरह इस अवधि में 757 आम लोगों की विभिन्न विद्युत हादसों में मौत हुई और 365 आम लोग गंभीर रूप से घायल हुए। यानी इस अवधि में कुल ९४६ जनों को जान से जाना पड़ा, जबकि ९०४ लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
आदेश जो किसी काम ना आए
जोधपुर डिस्कॉम के सचिव (प्रशासन) ने 18 अप्रेल 2017 को एक परिपत्र जारी किया था। जिसमें विद्युत हादसों की रोकथाम के लिए सुरक्षा संबंधी निर्देशों की पालना के निर्देश दिए गए थे। इसमें बताया गया था कि डिस्कॉम को-ऑर्डिनेशन फॉरम की दिनांक 3 सितम्बर 2014 को हुई बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसरण में सुरक्षा उपकरणों से संबंधित जारी आदेशों की पालना नहीं करने वाले और शिथिलता बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जाएगी। मगर आज तक इन आदेशों की सख्ती से पालन नहीं हुई।
कार्मिक मांग रहे ये उपकरण
डिस्कॉम के ही जारी आदेश के तहत प्रत्येक 33/11 केवी सब स्टेशन पर एक टूल बॉक्स (लॉक एंड की) रखने के निर्देश थे। जिसमें रबर हेंड ग्लव्ज-2 जोड़ी, अर्थिंग चेन मय टाय रॉड-2, स्कू्र ड्रायवर-1, इन्सुलेटेड प्लायर-1, स्पेनर सेट-1, एसी वॉल्टेज डिटेक्टर-1, डिस्चार्ज रॉड-1, लकड़ी की सीढ़ी-6, रिचार्जेबल टॉर्च-1, फस्र्ट एड बॉक्स, अग्निशमन यंत्र-1, रेत से भरी बाल्टियां-3, पाइप रिंच-1 (टूल बॉक्स के बाहर), रबर शीट-10, सेफ्टी बैल्ट-1, लॉग शीट, टूल बॉक्स, लाइफ रीसक्सीटेटर-1, हेलमेट-1 (प्रति दो वर्ष में) व सेफ्टी शूज-1 जोड़ी (प्रति दो वर्ष में) समेत विभिन्न उपकरण देना जरूरी है।
इनका कहना…
डिस्कॉम प्रशासन की कमजोर मॉनीटरिंग और कमीशन खोरी के कारण पूरे राज्य में तकनीकी कार्मिकों को समय पर सुरक्षा उपकरण नहीं मिल पा रहे हैं। लाखों करोड़ों के उपकरण खरीद के बाद स्टोर में ही पड़े रहते हैं या फिर मानकों के मुताबिक खरीदे नहीं जाते। हादसों की मुख्य वजह यह भी है कि एक सब स्टेशन पर दो-दो कर्मचारी कई दिन तक ड्यूटी देते हैं। कहीं अनट्रेंड कार्मिक हैं तो कहीं सब स्टेशन ठेके पर दे रखे हैं। कुल मिलाकर यह अधिकारियों की कमजोर मॉनिटरिंग और भ्रष्टाचार का ही नतीजा है।
– कुलदीप वर्मा, प्रदेश प्रचार मंत्री, राजस्थान विद्युत तकनीकी कर्मचारी एसोसिएशन, जयपुर
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