खेती के लिए मजदूरों की सर्वाधिक जरूरत
मौजूदा समय में कृषि कार्य में मजदूरों की कमी बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। खेतों में फसलों की बुवाई से निराई, गुड़ाई व कटाई तक किसानों को मजदूरों की कमी अखरने लगी हैं। अब खेतों में फसल बुवाई करनी हो या फिर निराई-गुड़ाई व बाद में फसलों की कटाई। सब कार्यों में किसानों को मजदूरों को मुंहमांगे दाम देने पड़ रहे हैं। क्षेत्र में इन दिनों बाजरा, ज्वार ,तिल, मूंग मोठ आदि की फसल की कटाई शुरू होने लगी है। बिगड़े मौसम के मिजाज से खेतों में तैयार फसलों में नुकसान ना हो, इसके लिए किसान फसल कटाई करवाकर उपज को तैयार कर घर लाने की जल्दी में है, लेकिन फसल कटाई के लिए मजदूरों की कमी बड़ी समस्या बन रही है। किसानों को मुंहमांगी मजदूरी देकर मजदूरों की व्यवस्था करनी पड़ रही है। फिर भी अधिकांश किसान जरूरत अनुसार मजदूरों की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में किसान खासे परेशान है।
हकीकत यह भी
किसानों को मजदूरों की व्यवस्था अन्य राज्यों व जिलों से करनी पड़ रही है।वर्तमान में पंजाब, मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान के कोटा, झालावाड़, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़़ सहित भारत के कई राज्यों व राज्य के कई जिलों से मजदूरों की भीड़ रोजाना रामदेवरा में देखने को मिल रही हैं। रामदेवरा में आने वाली हर रेल इन दिनों मजदूरों से भरी हुई आ रही है। इन मजदूरों को किसान आने जाने का किराया भी देते है। रेल से उतरते ही बड़ी संख्या में लोग इनका इंतजार करते भी नजर आते हैं, तो कई ठेकेदार भी अपनी गाडिय़ां लेकर रेलवे स्टेशन के बाहर से ही इन्हें अपने साथ लेकर चले जाते है।
यहां मजदूरी ज्यादा
कई राज्यों से आए मजदूरों की मानें तो उनके क्षेत्र में एक मजदूर को अधिकतम 300 रुपए मजदूरी मिलती है। जबकि इस क्षेत्र में 600 से 700 रुपए मजदूरी के साथ भोजन, किराया व अन्य खर्च भी देते है। उन्होंने बताया कि दो महीनों तक इसी क्षेत्र में रहेंगे। जानकारी के अनुसार क्षेत्र में दस हजार से ज्यादा मजदूर पहुंच चुके है और आगामी दिनों में बड़ी संख्या में मजदूर आएंगे।
करनी पड़ती शर्तें पूरी
किसानों की मानें तो फसल की बुआई एवं कटाई मशीनों से होने लगी है, लेकिन ज्यादातर किसान फसल कटाई के लिए परंपरागत तरीके को ही बेहतर मानते है। इसमें मजदूरों की समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि किसानों को मजदूरों को पूरी सहुलियत देनी पड़ती है। मजदूरों को तो घर से खेतों तक लाने व ले जाने की व्यवस्था के साथ मुंहमांगे दाम देना पड़ रहा है।