जैसलमेर

ढाई दशक से जीर्ण-शीर्ण पड़ा है बीलिया नदी का बांध, पत्थर ले जा रहे लोग

पोकरण कस्बे के ऐतिहासिक सालमसागर तालाब के मुख्य जलस्त्रोत बीलिया नदी पर सिंचाई विभाग की ओर से वर्षों पूर्व लाखों रुपए की धनराशि खर्च कर निर्माण करवाया गया बांध 17 वर्ष पूर्व क्षतिग्रस्त हो जाने के बावजूद उसकी मरम्मत को लेकर विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

जैसलमेरNov 24, 2024 / 08:32 pm

Deepak Vyas

पोकरण कस्बे के ऐतिहासिक सालमसागर तालाब के मुख्य जलस्त्रोत बीलिया नदी पर सिंचाई विभाग की ओर से वर्षों पूर्व लाखों रुपए की धनराशि खर्च कर निर्माण करवाया गया बांध 17 वर्ष पूर्व क्षतिग्रस्त हो जाने के बावजूद उसकी मरम्मत को लेकर विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जिसके चलते यह बांध न केवल और अधिक क्षतिग्रस्त हो रहा है, बल्कि धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। जानकारी के अनुसार करीब ढाई दशक पूर्व बीलिया नदी में पानी के साथ बहकर आने वाली अथाह रेत को सालमसागर तालाब में जाने से रोकने के लिए व नदी के दोनों तरफ स्थित पुराने कुओं में जल स्तर बढ़ाने के उद्देश्य से महेशानंद महाराज के आश्रम के पीछे नदी पर सिंचाई विभाग की ओर से एक विशाल बांध बनाया गया था। इस बांध का पश्चिमी हिस्सा बारिश के दौरान नदी के तेज बहाव के कारण वर्ष 2006 में क्षतिग्रस्त हो गया, लेकिन विभाग की ओर से इसकी मरम्मत नहीं की गई। जिसके चलते 2007 में हुई बारिश के दौरान बांध का आधे से अधिक हिस्सा टूटकर बिखर गया और उसके बाद लगातार धीरे-धीरे बांध न केवल क्षतिग्रस्त हो रहा है, बल्कि उसका अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है।

नदी का बढ़ रहा कटाव

लगातार 17 वर्षों से बारिश के दौरान बहने वाली बीलिया नदी से न केवल बांध का पश्चिमी हिस्सा ओर अधिक क्षतिग्रस्त हो रहा है, बल्कि नदी के इस छोर में करीब 100 फीट गहरा व 150 फीट से भी अधिक चौड़ाई में और 250 फीट से भी अधिक लंबाई में गहरा विशालकाय गड्ढ़ा बन चुका है, जो प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है। साथ ही बारिश के दौरान नदी का कटाव क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है। जिससे उस तरफ स्थित बावडिय़ों को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है।

लोग ले जा रहे पत्थर

करीब 150 फीट लम्बे, 10-12 फीट चौड़े व करीब 40 फीट गहरे इस बांध के निर्माण में सैकड़ों ट्रक पत्थर का उपयोग लिया गया था, लेकिन लगातार 17 वर्षों से प्रतिवर्ष इस बांध के धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने से इसके पत्थर पानी के साथ बहकर नदी में बिखरते जा रहे हैं। इन पत्थरों को नदी के सूखने के बाद लोग टै्रक्टरों में भरकर ले जा रहे हैं, जिन्हें पूछने व रोकने वाला कोई नहीं है। गत 17 वर्षों में बड़ी संख्या में पत्थर यहां से गायब हो गए, लेकिन विभाग की ओर से इस संबंध में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। यदि समय रहते इस बांध के पुनर्निर्माण, मरम्मत व रख-रखाव को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले दिनो में इस बांध का नामो-निशां ही मिट जाएगा।

तालाब में जा रही मिट्टी

बीलिया नदी पर निर्मित बांध के टूट जाने के कारण इसका उद्देश्य ही पूरा नहीं हो पा रहा है। सालमसागर तालाब में जाने वाली मिट्टी को रोकने के लिए इस बांध का निर्माण करवाया गया था, लेकिन अब नदी के साथ बहने वाली रेत रुकने की बजाय सीधी तालाब में जा रही है। जिसके कारण तालाब के पायतन में रेत के भंडार जमा हो रहे हैं।
कार्ययोजना बनाकर करें संरक्षण तो बने बात— पत्रिका व्यू
इस तरह के कई बांध व बड़े खड़ीन या तो तेज बारिश के दौरान पानी के बहाव के चलते या शहरी क्षेत्रों में कॉलोनियों के निर्माण के दौरान खड़ीन मालिकों की ओर से तोड़ दिए गए है। उनके संरक्षण को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। भू-जल विभाग व जल संसाधन विभाग की ओर से एक कार्ययोजना बनाकर बारिश के जल के संरक्षण के लिए बांध व खड़ीनों के निर्माण पर राशि खर्च की जाती है तो बारिश के पानी को संग्रहित कर भू-जल स्तर की स्थिति को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही ऐसे बांध व खड़ीनों के पुनर्निर्माण व मरम्मत से इनका दशा को भी सुधारा जा सकता है

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