जैसलमेर

पानी की किल्लत में भी बंटती है मिठास, पानी की किल्लत में भी बंटती है मिठास

अप्रेल का महीना शुरू होते ही थार का रेगिस्तान गर्म हवाओं की चपेट में आ जाता है।

2 min read
Apr 12, 2025

अप्रेल का महीना शुरू होते ही थार का रेगिस्तान गर्म हवाओं की चपेट में आ जाता है। तापमान 45 डिग्री के करीब पहुंचने लगता है और दोपहर में बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता है, लेकिन इस तपती ज़मीन पर रिश्तों की एक ठंडी परंपरा अब भी जीवित है—साझा छांव, साझा पानी और साझा सहारा। गांवों और कस्बों में आज भी लोग इस मौसम में सामाजिक संबंधों को निभाने का एक पुराना तरीका अपनाते हैं। पड़ोसियों के साथ मिलकर बैठना, एक-दूसरे के आंगन की छांव साझा करना और पीने के पानी तक को बांटना - ये सब थार के समाज की परंपरा में गहरे रचे-बसे हैं। नहरी क्षेत्र में रहने वाले 72 वर्षीय हरजीराम बताते हैं कि गर्मी में घर के अंदर दम घुटता है, तो हम दीवार की छांव में चारपाई डाल लेते हैं। वहां पास-पड़ोस के लोग बैठते हैं, बात करते हैं। ये आदत नहीं, संस्कृति है। वे कहते हैं कि जब धूप चरम पर होती है, तब इंसान की असली परख होती है - और थार का इंसान इस पर हमेशा खरा उतरा है। पानी जैसी दुर्लभ चीज भी यहां बंटती है। इसी तरह हाजी बी कहती हैं कि हमारे यहां मेहमान का स्वागत पानी से होता है और अगर कोई राहगीर भी दरवाजे पर आ जाए, तो पहले उसे घड़े का ठंडा पानी दिया जाता है, चाहे पानी जितना भी कम हो।" पोकरण क्षेत्र के प्रकाश गोदारा बताते हैं कि यहां लोग मुसीबत में दूर से आवाज़ सुनते ही मदद को निकल पड़ते हैं। ये भावना कहीं खोने नहीं दी जानी चाहिए। जीवन के 85 बसंत देख चुके हरि प्रसाद कहते हैं कि जैसलमेर जिले का रेगिस्तान चाहे जितना कठोर हो, यहां के लोग उतने ही मुलायम दिल वाले हैं। आधुनिक जीवनशैली ने भले शहरी रिश्तों को दूर कर दिया हो, लेकिन थार के लोग अब भी रिश्तों को पानी की तरह सहेजते और बांटते हैं। यह परंपरा न सिर्फ जीवित है, बल्कि आज की दुनिया के लिए एक सबक भी है—कि गर्म हवाओं में भी रिश्तों की छांव बनाई जा सकती है, अगर दिलों में ठंडक बची हो।

Published on:
12 Apr 2025 10:11 pm
Also Read
View All

अगली खबर