सुन्न हो रही व्यवस्था, जैसाण के बाशिंदों में रोष
दिवाली से पहले शहर में पेयजल संकट की स्थितियां बन गई थीं, जिन्हें समय रहते सुधारने की जिम्मेदारी जिन जिम्मेदारों के कंधों पर डाली हुई है, वे दूसरे के सिर पर अव्यवस्था का ठीकरा फोडऩे में व्यस्त रहे। हकीकत यह है कि शहर के उपभोक्ता अगर उन्हें फोन कर जलापूर्ति में लगने वाले लम्बे समय और पानी कब आएगा, इसकी जानकारी लेना चाहें तो उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। जिम्मेदारी से जुड़े अभियंताओं के मोबाइल से या तो स्विच ऑफ की ध्वनि सुनाई पड़ रही है अथवा फोन च्बिजीज् है का संदेश ही सुनाई देता है। शहरी क्षेत्र के बाशिंदों में भी जल संबंधी समस्या को लेकर रोष है।
सुधरने की बजाए चरमराई व्यवस्था
जैसलमेर शहर में कई वर्षों तक जलापूर्ति की व्यवस्था नगरपरिषद के जिम्मे थी। सरकार ने जलदाय विभाग की विशेषज्ञता को देखते हुए प्रदेश के कुछ और शहरों की भांति जैसलमेर शहर की जलापूर्ति को नगरपरिषद से लेकर जलदाय विभाग को सौंप दी। उसके बाद से हालत यह हो गई है कि व्यवस्था में सुधार के स्थान पर बिगाड़ आ गया।
कहां जाएं और क्या करें
करीब 5 से 7 दिन के अंतराल में पीने के पानी की आपूर्ति किए जाने का सबसे गहरा दंश शहर के भीतरी इलाके में तंग गलियों में रहने वालों को झेलना पड़ रहा है। उनके पास तो पैसा खर्च कर टैंकर मंगवाने की सुविधा भी नहीं हैं, क्योंकि इन गलियों में ट्रेक्टर तो दूर तिपहिया टैक्सी तक नहीं पहुंच पाती। शहर में पहले ही हजारों लोग जिनमें दुकानदारों के साथ रहवासी भी शामिल हैं, पीने के पानी के 30 से 35 रुपए प्रति कैम्पर खर्च कर रहे हैं।
दूसरों से मांग कर लाना पड़ रहा पानी
जैसलमेर में सर्दी के मौसम की आहट के बीच पीने के पानी की इतनी तंगी समझ से परे है। हमारी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। दिवाली जैसे त्योहार पर भी इस बार हमें पानी के लिए तरसना पड़ा है।