जैसलमेर

ये है राजस्थान का चमत्कारी मंदिर, जिसके आगे फुस्स हो गए थे पाकिस्तान के सैकड़ों बम

राजस्थान के जैसलमेर में चमत्कारी तनोट माता का मंदिर है। इसे तनोटराय मातेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है।

Feb 02, 2024 / 03:15 pm

Rakesh Mishra

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- राजस्थान के जैसलमेर में चमत्कारी तनोट माता का मंदिर है। इसे तनोटराय मातेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को तनोट के भाटी राजपूत राव तनुजी ने बनाया था। खास बात तो यह है कि इस मंदिर की पूजा अर्चना का जिम्मा बीएसएफ के हाथों में है। यहां दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे भव्य आरती होती है। इस वक्त बड़ी संख्या में भक्त यहां जुटते हैं।

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- तनोट राय मन्दिर आमजन की आस्था का केन्द्र भी बनता जा रहा है। भारत-पाकिस्तान के 1965 व 1971 के युद्ध के बाद मंदिर ने विशेष ख्याति बढ़ी है। इस मंदिर को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रुमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं। वहीं जब मन्नत पूरी हो जाती है तो भक्त रुमाल को खोल लेते हैं।

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- इस मंदिर को काफी चमत्कारी भी माना जाता है। दरअसल 1965 और 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से इस मंदिर के आसपास सैकड़ों बम गिराए गए थे, लेकिन इनमें से एक भी बम नहीं फूटा। भक्त इसे मंदिर का चमत्कार ही मानते हैं।

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- अगर आप इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं तो आपको यहां वो बम भी दिखाए दे जाएंगे। कुछ बमों को आज भी मंदिर परिसर में सुरक्षित रखा गया है। माना जाता है कि युद्ध में मंदिर के आस पास करीब तीन हजार बम बरसाए और करीब साढ़े चार सौ गोले मंदिर परिसर में गिरे बम फटे ही नहीं।

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- कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के हिन्दू देवताओं के चमत्कारिक कारनामों से प्रभावित होकर विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने और छत्र वगैरह चढ़ाने के किस्से भले ही प्रमाणित न हों, लेकिन इस बात के तो आज भी कई चश्मदीद गवाह मौजूद हैं कि 1965 के युद्ध के दौरान एक प्राचीन सिद्ध मंदिर की देवी के चमत्कारों से अभिभूत पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भी उसके दर्शन के लिए लालायित हो उठे थे।

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- चमत्कारिक माने जाने वाला यह मंदिर 1200 साल पुराना है। बताया जाता है कि वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया।

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- करीब ढाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने न केवल माता की प्रतिमा के दर्शन किए बल्कि मंदिर में चांदी का एक सुंदर छत्र चढ़ाया। ब्रिगेडियर खान का चढ़ाया हुआ छत्र आज भी इस घटना का गवाह बना हुआ है।

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