जैसलमेर

पांवों में छाले, सिर पर बारिश.. मीलों चलते ये भक्त निराले

आस्था और श्रद्धा, वो भाव ले आती है कि फिर प्राण जाए पर संकल्प न जाए… का मंत्र लेकर भक्त अपने आराध्य पर ऐसे समर्पित होते है कि देखने वालों की आंखें बरस जाए।

जैसलमेरSep 05, 2024 / 08:51 pm

Deepak Vyas

आस्था और श्रद्धा, वो भाव ले आती है कि फिर प्राण जाए पर संकल्प न जाए… का मंत्र लेकर भक्त अपने आराध्य पर ऐसे समर्पित होते है कि देखने वालों की आंखें बरस जाए। श्रद्धा के ऐसे हजारों दृश्य देखने हों तो रामदेवरा पहुंच जाइए। सैकड़ों किमी दूर से सफर करके आ रहे श्रद्धालुओं के पांवों में छाले पड़ गए है। बारिश के पानी से भीग-भीगते आने पर एक डग भरना मतलब दर्द को सौ गुुना करना। पर, संकल्प नहीं छोड़ा, हिम्मत नहीं हारी और पहुंच गए बाबा के दरबार। यहां जैकारा करते ही मानो उनका सारा दर्द काफूर हो गया। लाखों श्रद्धालु मेले में रामसापीर की समाधि के आगे मत्था टेककर रहे है, कोई मांगने आया है तो किसी को विश्वास है जो मांगा मिल गया इसलिए बाबा की कृपा..।
रेगिस्तान में बाबा रामदेव के मंदिर में मेला भाद्रपद की द्वितीया से मेला शुरू हो गया है। श्रद्धालुओं का सैलाब चरम पर है। यहां लग्जरी गाडिय़ों और बड़े-बड़े वाहनों से आने वालों के वाहन पार्किंग में लग गए है। दूसरी ओर एक बड़ा रैला उनका आया है जो पैदल यात्री है। गुजरात, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों के अलावा राजस्थान व आसपास से लाखों भक्त अपनी गांव-ढाणी-शहर से बाबा के नाम की ध्वजा उठाकर पैदल चलकर आए है। श्रावण-भाद्रपद की बारिश, उमस की गर्मी, जंगली रास्ते में जहरीले कीट-जानवरों का खतरा और उस पर पैदल चलने से पांव में पडऩे वाले छालों का दर्द सहते-सहते आए ये श्रद्धालु थके लग रहे हैै लेकिन यहां आकर मुस्कराते हुए।

पूछ पैदल आने वालों की

बरसों से यहां मंदिर की ओर से एक व्यवस्था तय है कि पैदल जातरूओं को अलग से दर्शन करवाने का इंतजाम होगा। कतार में अलग से जैकारे लगाते दर्शन करते है और इनका दर्द काफूर हो जाता है। यहां कतार में लगने वाले समय को ये लोग अपने लिए विश्राम ही मानते है।कितने पैदल आए चप्पलों से पता चलता है
पैदल आने वाले अपने चप्पल-जूते यहीं रामदेवरा में उतारकर जाते है। मेले के बाद यहां इतने चप्पल जूते होते है कि उससे अंदाजा लगता हैै कि पैदल आने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

मजदूरी पेशा ही नहीं धन्नासेठ भी

ऐसा नहीं है कि पैदल आने वाले जातरूओं में केवल मजदूरी पेशा है, इसमें कई धन्नासेठ भी है। साधारण आदमी की तरह जंगलों को रास्ता पार कर पैदल आने वालों को देखकर अंदाजा ही नहीं लगा सकते कि यह अमीर है या गरीब..बाबा की इस पदयात्रा में सारे भक्त केवल भक्त नजर आते है।

अब संघ का चलन बढ़ा

अब कई शहरों से संघ आने लगे है। ये संघ साथ में डीजे, भजनगायक, खाने पीने का सामान और तमाम व्यवस्थाएं लेकर चलते है। इनके आने से गांव-गांव में भक्ति का माहौल और जोरदार बढ़ रहा है।

भक्ति में निहित शक्ति

बाबा रामदेव की समाधि दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की आस्था हर साल नए आयाम छूती है। गुजरात के बड़ौदा निवासी बखत सिंह, 60 वर्षीय, ने बाबा रामदेव के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हुए 700 किलोमीटर की पैदल यात्रा संघ के साथ पूरी की और रामदेवरा पहुंचे। बखत सिंह बताते हैं, ‘भक्ति में शक्ति है, और यह शक्ति ही हमें इतनी लंबी यात्रा करने का संबल देती है।’
इसी प्रकार पंच महल, गुजरात के शैलेश भाई, जो 45 वर्ष के हैं, ने भी कई बार अपने गांव से रामदेवरा तक की पैदल यात्रा की है। उनकी यात्रा के दौरान कभी कोई परेशानी नहीं आई, जो उनके बाबा रामदेव पर अटूट विश्वास को दर्शाता है। शैलेश भाई कहते हैं, ‘बाबा की कृपा से कभी कोई कठिनाई महसूस नहीं हुई। बाबा रामदेव के दर्शन के लिए पैदल चलने का अनुभव ही अनमोल है।’
रीवा बेन, जो वर्षों से बाबा रामदेव की भक्ति में लीन हैं, का मानना है कि बाबा रामदेव सभी के दु:ख दर्द दूर करते हैं। वह कहती हैं, ‘बाबा रामदेव की भक्ति में अद्वितीय शक्ति है। यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु, जिनमें हजारों पैदल यात्री भी शामिल होते हैं, रामदेवरा आते हैं।

फैक्ट फाइल

-5 सितंबर से भादवा मेला 2024 शुरू
-15 दिन तक चलेगी मेले की रेलमपेल

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