जैसलमेर

हवा-हवाई न हो दावे, मिलेगी दिशा तो बेहतर होगी दशा

आंधी, तूफ़ान व बवंडर लाने वाली बाड़मेर व जैसलमेर की हवाएं देश भर में पवन ऊर्जा और इसमें शामिल हाईब्रिड ऊर्जा को लुटा रही हैं। गौरतलब है कि रेगिस्तान की गोद में बसे बाड़मेर व जैसलमेर जिलों में व्यावसायिक लिहाज से पवन ऊर्जा के पंखों के लिए आदर्श परिस्थितियां मानी जाती है।

जैसलमेरApr 09, 2024 / 08:41 pm

Deepak Vyas

हवा-हवाई न हो दावे, मिलेगी दिशा तो बेहतर होगी दशा

 

आंधी, तूफ़ान व बवंडर लाने वाली बाड़मेर व जैसलमेर की हवाएं देश भर में पवन ऊर्जा और इसमें शामिल हाईब्रिड ऊर्जा को लुटा रही हैं। गौरतलब है कि रेगिस्तान की गोद में बसे बाड़मेर व जैसलमेर जिलों में व्यावसायिक लिहाज से पवन ऊर्जा के पंखों के लिए आदर्श परिस्थितियां मानी जाती है। राजस्थान में नई ऊर्जा नीति घोषित होने के बाद उम्मीदें परवान पर है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में नए निवेशक आएंगे। मौजूदा समय में बाड़मेर के शिव व जैसलमेर जिले के फतेहगढ़ क्षेत्र सहित समीपवर्ती क्षेत्रों में 233 पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने की कवायद चल रही है। पवन ऊर्जा संयंत्रों से जो बिजली उत्पादित होती है, वह यहां से नेशनल ग्रिड को भेजी जाती है। बताते हैं कि नेशनल ग्रिड कंपनियों से बिजली की खरीद कर आगे वह उसका वितरण करता है। प्रदेश में वर्तमान में 4338 मेगावाट विद्युत उत्पादन वन ऊर्जा से हो रहा है, जिसमें 4000 मेगावाट का अकेले बाड़मेर व जैसलमेर में ही उत्पादन हो रहा है। समूचे भारत में 39691 मेगावाट बिजली पवन ऊर्जा से उत्पादित हो रही है। विश्व में भारत पांचवा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक देश है, वहीं सर्वाधिक पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य तमिलनाडू है। राजस्थान का पवन ऊर्जा की दृष्टि से भारत में चौथा स्थान है। राजस्थान में सर्वाधिक पवन ऊर्जा संयंत्र जैसलमेर में लगे हुए है। बाड़मेर जिले में वर्ष 2012 से क्षेत्र के कोटड़ा,रामपुरा,मेहरान की ढाणी ,शिव, गूंगा, अंबावाड़ी, हुक्मसिंह की ढाणी , हड़वा, राजडाल ,भिंयाड़, धारवी क्षेत्र में पवन चक्क्यिां लगी है।

2 मेगावाट से शुरुआत

जैसलमेर जिले में पवन ऊर्जा का पहला प्रोजेक्ट राजस्थान स्टेट पॉवर प्रोजेक्ट कारपोरेशन लि. की ओर से 2 मेगावाट का विंड फार्म वर्ष 1999-2000 में स्थापित किया गया।

प्रदेश में जैसलमेर से शुरूआत

राजस्थान में प्रथम पवन ऊर्जा परियोजना जैसलमेर जिले के अमरसागर में 10 अप्रैल 1999 में स्थापित हुई। भारत का दूसरा पवन ऊर्जा पार्क राजस्थान में जैसलमेर जिले के लौद्रवा में स्थापित किया गया है।

हकीकत: बाधाएं भी

रिण इलाके की खारेपन से भरी जमीन ऊर्जा उद्योग के हितों के विपरीत मानी जाती है।

-यहां निवेश करने वाले उद्योगपतियों ने गत वर्षों के दौरान अन्य राज्यों का रुख किया है।

-जिले में कुशल श्रमिकों की बड़ी कमी है।

… तो बढ़ जाएगा उत्पादन भी

अमूमन एक पवन ऊर्जा संयंत्र की लंबाई 90 मीटर होती है। यदि इसकी लंबाई 30 मीटर तक अधिक होने की स्थिति में इसका उत्पादन भी करीब 15 प्रतिशत बढ़ जाएगा। एक बड़ी पवन चक्की 3.4 मेगावाट बिजली उत्पादन करने में सक्षम है, जो करीब 1900 घरों में विद्युतापूर्ति के लिए पर्याप्त मानी जाती है। एक पवन चक्की के फाउंडेशन पर एक करोड़ का खर्च आता है, वहीं पूरी पवन चक्की की लागत 15 से 16 करोड़ तक आंकी जाती है। हवा की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटा की स्थिति पवन ऊर्जा संयंत्र के लिए आदर्श मानी जाती है।

हकीकत यह भी

– पंखे लगाने के लिए कुल राशि का एक चौथाई हिस्सा सम्बंधित व्यक्ति या संस्था को लगाने की व्यवस्था करनी पड़ती है और शेष तीन चौथाई राशि लोन के रूप में निवेशित की जाती है।

– पवन ऊर्जा संयंत्र से उत्पादित बिजली से मिलने वाली राशि से किश्त जमा हो जाती है, वहीं सर प्लस सम्बंधित के एकाउन्ट में जमा हो जाता है।

-पवन ऊर्जा के संयंत्र लगाने के लिए सरकार की ओर से जमीन भी बहुत ही कम दरों पर उपलब्ध करवाई जाती है।

-माना जाता है कि 20 वर्ष में संबंधित संयंत्र अपनी लागत निकाल लेता है और काफी लाभ अर्जित कर लेता है।

-इन सबके बीच हकीकत यह भी है कि ग्राम पंचायत को इन संयंत्रों लगाए जाने से राजस्व संबंधी कोई लाभ नहीं मिलता।

-शुरुआती दिनों में संबंधित क्षेत्र के ग्रामीणों को रोजगार मिलने की उम्मीद जरूर रहती है।

Hindi News / Jaisalmer / हवा-हवाई न हो दावे, मिलेगी दिशा तो बेहतर होगी दशा

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.