ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि भैंसे पर सवार रहनेवाले दण्डधर यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। इनका एक अलग लोक जिसे यमलोक कहा जाता है। मौत के बाद मनुष्य यमलोक में ही जाता है जहां यमराज उनके कर्मों के आधार पर उसे स्वर्ग या नरक में भेजते हैं। यमराज दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे गए हैं।
लोककथा के अनुसार एक राजपुत्र की शादी के चार दिन बाद ही मौत हो गई। उसकी नवविवाहिता पत्नी का करुण विलाप सुनकर यमदूत भी द्रवित हो उठे। उन्होंने यमराज से पूछा कि जीवों को मौत देते समय उनमें दयाभाव क्यों नहीं आते! यमराज ने बताया कि उनका कर्तव्य ही यही है। इसपर दूतों ने उनसे अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताने की प्रार्थना की।
यमराज ने कहा कि धनतेरस की शाम दक्षिण दिशा में दीप जलाकर रखने से अकाल मृत्यु नहीं होगी। यही कारण है कि धनतेरस को आंगन में दक्षिण दिशा में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं और यमदेव की पूजा करते हैं। यमराज की पूजा धनतेरस पर ही की जाती है। इससे अकाल मौत के भय से मुक्ति मिलती है।