राजस्थान के जोधपुर शहर से 28 किलोमीटर दूर खेजड़ली में हरे वृक्ष खेजड़ी के लिए अमृता देवी विश्नोई के एक आह्वान पर 363 लोगों ने खुद को बलिदान ( Khejarli Aandolan ) कर दिया और समूचे विश्व को प्रकृति और पर्यावरण बचाने की प्रेरणा दी। खेजड़ली गांव में अमृतदेवी बिश्नोई तथा उनकी तीन मासूम पुत्रियों आसु, रतनी, भागु ने पेड़ों की रक्षा के लिए पेड़ों से लिपट कर यह आह्वान किया। ‘पेड़ बचाने के लिए यदि शीश भी कट जाता है तो यह सौदा सस्ता है’ और पेड़ों के लिए खुद को बलिदान ( khejarli sacrifice ) कर दिया। 363 महिला-पुरुषों ने पर्यावरण संरक्षण को अपना धर्म मानते हुए 1730 में अपने प्राणों का बलिदान कर समाज को पेड़ों को बचाने की प्ररेणा दी। सरकार का वन विभाग पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान देने वाले व्यक्तियों को अमृता देवी विश्नोई स्मृति पुरस्कार प्रदान करता है।
अमृता देवी के नाम पर खेजड़ली में पर्यावरण संरक्षण मेला लगता है और वन विभाग पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार भी देता है। अमृतादेवी के लिए कई कवियों ने कविताएं भी लिखी हैं।