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जयपुर

सत्ता का त्रिदेव, देवियों को जगह नहीं

– संवैधानिक, वैधानिक व राजनीतिक पद तीनों जगह नारी शक्ति की एक जैसी स्थिति

जयपुरOct 08, 2021 / 03:10 am

Shailendra Agarwal

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जयपुर। मंच चाहे जो हो हर जगह महिला-पुरुष बराबरी का संदेश देने को ‘यत्र नार्यस्तु पूजयंते, रमंते तत्र देवता’ वाक्य से संबोधन की शुरुआत होती है, लेकिन आजादी के 74 साल बाद सत्ता के तीन देव यानी तीनों स्तंभ कार्यपालिका-विधायिका-न्यायपालिका में प्रमुख पदों पर नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व ऐसे संबोधनों पर सवाल उठा रहा है। तीनों स्तंभों में राजस्थान में प्र्रमुख पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा नहीं है।
वैसे राजस्थान ऐसा उदाहरण है जहां मुख्य न्यायाधीश को छोड़ राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव जैसे प्रमुख पदों पर महिलाओं को मौका मिला, परंतु अब स्थिति पहले जैसी नहीं है। नौकरशाही में 48 महिला आइएएस में से 13 ही अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, चैयरमेन या कलक्टर हैं। न्यायपालिका में वरिष्ठता के बावजूद महिला एक ही प्रधान जिला जज है। निर्वाचित प्रतिनिधियों में से मंत्री या समान संवैधानिक या वैधानिक पदों पर भी महिलाओं की यही स्थिति है। राज्यपाल की छत्रछाया वाले 28 विश्वविद्यालयों में से दो में ही महिला कुलपति हैं। इस स्थिति का कारण खोजने के लिए इन पदों को संभाल रही महिलाओं से बात की गई, तो जवाब मिला अब तो पहले से काफी सुधार है।
ब्यूरोक्रेसी:
महिला आइएएस-57, जिनमें से 9 केन्द्र या अन्य राज्यों में प्रतिनियुक्ति पर हैं। जो हैं उनमें से दो ही चैयरमेन हैं, जबकि चेयरमैन पद वाली प्रमुख संस्थाएं 11 हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव-4 में से एक, प्रमुख सचिव 17 में से 4, सचिव 16 में से 3 और कलक्टर 33 में से 3 ही महिला हैं।
राजनीति:
विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, मंत्री, नेता प्रतिपक्ष व सरकारी मुख्य व उप मुख्य सचेतक के 25 पदों में से एक पर ही महिला है। आयोगों में केवल बाल अधिकार संरक्षण आयोग अध्यक्ष ही महिला है। बोर्ड व सरकारी उपक्रमों में भी महिला मुखिया कम है।
न्यायपालिका:
देश के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना बार-बार महिला भागीदारी बढ़ाने को कह चुके, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश व न्यायाधीश के पद तो छोडिए जिलों के प्रधान जजों में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कमजोर है। वरिष्ठता में उुपर 12 महिला न्यायिक अधिकारियों में से एक ही प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं।
‘सवाल यह है कि जिसके पास शासन-सत्ता है, वह उसे हक मान बैठा है। यह स्थिति सब जगह है, घरों में भी है। यह सोच बदलने पर ही स्थिति बदल पाएगी।’- अदिति मेहता, पूर्व नौकरशाह
’21 वीं सदी में भेदभाव की यह स्थिति अच्छी नहीं। जब उच्च पद पर कोई है तो निश्चित तौर पर वह पात्र है। जेंडर भेद कम कर समान मौका मिले।’ -नितिशा बिश्नोई, विधिवेता, न्यूयॉर्क

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