जयपुर

एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा क्यों करते है, जानें पौराणिक महत्व

आज भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है और इसे परिवर्तनी ,पद्मा एकादशी ,जलझूलनी यानि डोल गायरस के नाम से जाना जाता है। इस बार परिवर्तिनी एकादशी 6 सितंबर की तिथि को है।

जयपुरSep 06, 2022 / 03:33 pm

Kamlesh Sharma

आज भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है और इसे परिवर्तनी ,पद्मा एकादशी ,जलझूलनी यानि डोल गायरस के नाम से जाना जाता है। इस बार परिवर्तिनी एकादशी 6 सितंबर की तिथि को है। पौराणिकों कथा के अनुसार इस व्रत से वाजपेय यज्ञ के सामान फल मिलता है। धार्मिक पुस्तकों के अनुसार आज के दिन जो व्रत रखता है इस कारण उसके पाप का नाश होता है जो मनुष्य इस एकादशी के दिन श्री विष्णु की वामन रूप की पूजा करता है उसके मोक्ष की कामना पूरी होने का ये सुनहरा अवसर माना जाता है।

जानिए इसका पौराणिक महत्व
त्रेतायुग में राजा बलि नामक एक दैत्य था। वह भगवान विष्णु परम भक्त था। वो अनेक प्रकार के वेद मन्त्रों से उपासना करता और नित्य ब्राह्मणों और यज्ञों की पूजा का आयोजन किया करता था, परन्तु इन्द्र के प्रति नफ़रत के कारण इन्द्रलोक तथा समस्त देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली। लेकिन राजा बलि सौ यज्ञ को पूरा करने बाद ही स्वर्ग को प्राप्त कर पाते।

देवताओं के राजा इंद्र को दैत्यराज बलि की इच्छा का ज्ञान हो गया। तब इंद्र भगवान विष्णु के पास जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने के लिए अपने पांचवें अवतार वामन रूप के बारे में बताते है। माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। तब भगवान विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं। वामन अवतार श्रीहरि राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे।


राजा से भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन को निभाता है, विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्ग लोक और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता।
ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा ये विचार मन में आता है और वो आखिर में अपना सिर भगवान के आगे झुका देता है। और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं। राजा बलि और भगवान दोनों पाताल लोक चले जाते है और बलि को पाताल में रहने का आदेश करते हैं।
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बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर मांगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांगता है। विरोचन के पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई। एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते है, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन किया जाता है।
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यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है, पत्रिका इस बारे में कोई पुष्टि नहीं करता है । इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।

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