जयपुर

कौन बनेगा राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष, मंत्री पद से वंचित ये 5 दिग्गज रेस में

मुख्यमंत्री, मंत्रियों के नाम और विभाग बंटवारे को लेेकर चली लम्बी माथापच्ची के बाद अब विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव नई कांग्रेस के सामने एक और उलझन बनता नजर आ रहा है।

जयपुरDec 29, 2018 / 08:22 am

Santosh Trivedi

जयपुर। मुख्यमंत्री, मंत्रियों के नाम और विभाग बंटवारे को लेेकर चली लम्बी माथापच्ची के बाद अब विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव नई कांग्रेस के सामने एक और उलझन बनता नजर आ रहा है। पार्टी ने इस बार नया प्रयोग करते हुए वरिष्ठों को मंत्रिमंडल से दूर तो रख लिया, लेकिन मंत्री पद से वंचित कई वरिष्ठ विधायक अब विधानसभा अध्यक्ष की दौड़ में खड़े हो गए हैं।
 

कांग्रेस के लिए अब इन वरिष्ठ विधायकों में से एक को विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर चुनना टेढ़ी खीर होगा। मंत्री पद नहीं मिलने से इनमें से कई वरिष्ठ विधायक नाराज भी बताए जाते हैं। परम्परा रही है कि विधानसभा अध्यक्ष पद पर उसी को बैठाया जाता है जो कई बार विधायक रह चुका हो और जिसे संसदीय परम्पराओं की अच्छे से जानकारी हो। इस परिधि में कांग्रेस के पांच बड़े नेता आ रहे हैं।
 

सी.पी. जोशी
पांचवी बार विधायक बने हैं। केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी में बड़े पदों पर रह चुके हैं। चर्चा है कि इनको लोकसभा का चुनाव भी लड़वाया जा सकता है।
 

परसराम मोरदिया
छठी बार विधायक। बड़ा दलित चेहरा। अशोक गहलोत के नजदीकी माना जाता था। हालांकि, अजा के चार मंत्री पहले बन चुके हैं।

 

हेमाराम चौधरी
छठी बार विधायक बने। मंत्री नहीं बनाए जाने से मारवाड़ में नाराजगी भी है। बड़े जाट नेता हैं, लेकिन इस जाति के भी चार मंत्री बन चुके।
 

दीपेन्द्र सिंह शेखावत
पांचवी बार विधायक बने। शेखावाटी का बड़ा राजपूत चेहरा हैं। 2008 में भी स्पीकर रहे। उस समय भी कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं था।

 

भरत सिंह
चौथी बार विधायक बने हैं, बेबाक बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं औैर छवि भी स्वच्छ है। वे भी इस दौड़ में शामिल हैं। पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
 

बनाना होगा मजबूत स्पीकर
2008 की तरह कांग्रेस को इस बार भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में स्पीकर की कुर्सी पर ऐसा नेता बैठाना होगा, जो विपक्ष को साथ लेकर तो चले ही साथ ही सत्ता पक्ष के नेताओं को भी एकजुट रखकर सदन चलाए। हालांकि, कांग्रेस को बसपा का समर्थन पहले ही प्राप्त हो चुका है, फिर भी विपक्ष को नियंत्रण में रखने के लिए सदन में कांग्रेस को मजबूत और सूझबूझ वाले स्पीकर का चुनाव करना होगा।

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