पीएचइडी, डब्ल्यूडीएससी और यूनिसेफ के तत्वावधान में ‘कन्वर्जेंट प्लानिंग एंड इम्प्लीमेंटेशन फॉर सोर्स सस्टेनिबिलिटी इन राजस्थान’ विषय पर स्टेट कंसल्टेशन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसके उद्घाटन के दौरान मंत्री डॉ. महेश जोशी ने कहा कि जल संरक्षण के प्रति कम उम्र से ही बच्चों में जागरूकता पैदा के लिए चैप्टर स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। पीएचईडी एवं भूजल विभाग की ओर से जल संरक्षण एवं जल के बेहतर प्रबंधन से संबंधित पाठ्य सामग्री तैयार कर स्कूल शिक्षा विभाग को प्रस्ताव भेजा जाएगा।
मंत्री जोशी ने कहा कि पानी की कीमत और उसका बेहतर प्रबंधन जैसलमेर एवं बाड़मेर जैसे रेगिस्तानी इलाके की ढाणियों रहने वाले ग्रामीणों से अधिक कोई नहीं जान सकता। वहां बूंद-बूंद पानी को सहेजकर कम से कम पानी में गुजारा किया जाता है, जबकि शहरों में रहने वाले पढ़े-लिखे लोग पानी का उपयोग सही तरीके से नहीं कर पाते हैं। जितना बड़ा शहर होता है, पानी की उतनी ही अधिक खपत होती है। पानी का महत्व शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को समझना होगा।
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रिचार्ज स्ट्रक्चर बनने के बाद सूखे कुओं में आया पानी
निदेशक, वाटरशेड रश्मि गुप्ता ने कहा कि पेयजल योजनाओं की निरंतरता भूजल पुनर्भरण पर निर्भर है। वाटरशेड विभाग की ओर से किए जा रहे कार्यों का सोर्स सस्टेनिबिलिटी से सीधा संबंध है। विभाग द्वारा पिछले सात साल में 15 हजार गांवों में 3 लाख जल संग्रहण से संबंधित कार्य किए गए हैं। उन्होंने बताया कि जवाजा में वर्षों से सूखे कुओं के ऊपरी क्षेत्र में एमपीटी बनाने के बाद उनमें फिर से पानी आने लगा है। उन्होंने समस्त पेयजल स्त्रोतों को राजधरा पोर्टल पर एप्लीकेशन बनाकर जियो टैग करने का सुझाव दिया।
भूजल दोहन 151 प्रतिशत
यूनिसेफ की स्टेट हेड इजाबेल बार्डेल ने कहा कि राज्य में 60 प्रतिशत पेयजल जरूरतें भूजल से पूरी होती हैं लेकिन यहां भूजल की स्थिति चिंताजनक है। भूजल पुनर्भरण के मुकाबले दोहन 151 प्रतिशत है।