घाट की गूणी में नीचे उतरते ही भगवान विश्वकर्माजी का यह ऐतिहासिक मंदिर है। जयपुर स्थापत्य शैली में इसका प्रमुख द्वार बना हुआ है। यहां भगवान विश्वकर्माजी बाल स्वरूप में विराजित है, जिनकी करीब डेढ़ फीट उंची प्रतिमा है। मंदिर महंत शैलेन्द्र कुमार शर्मा बताते है कि मंदिर में आज पूजा दिवस मनाया जा रहा है। सुबह विश्वकर्माजी का अभिषेक कर नवीन पोशाक धारण करवाई गई। वे बताते है कि हर साल माघ शुक्ल त्रयोदशी पर यहां वार्षिक मेला भरता है, तब देशभर से श्रद्धालु मंदिर में आते है। यहां विशेष आयोजन होते है।
1727 ईस्वी में बना मंदिर
भगवान विश्वकर्मा मंदिर महंत शैलेन्द्र कुमार शर्मा बताते है कि यह मंदिर 1727 ईस्वी में बन गया था। पहले घाट की गूणी में बाग—बगीचे हुआ करते थे, जयपुर बसावट से पहले यहां अलग—अलग कला के कारीगर और हुनरमंद रहते थे। तब सवाई जयसिंह द्वितीय ने जांगिड़ समाज के लोगों को चौकड़ी तोपखाना देश में बसाया। उस समय घाट की गूणी में पुराना घाट हुआ करता था, तब यहां विश्वकर्माजी का मंदिर बनाया गया। महंत शैलेन्द्र का दावा है, उस समय देशभर में एकमात्र यहीं विश्वकर्माजी का मंदिर हुआ करता था।
साल-दर-साल होता गया विकास
विश्वकर्मा मंदिर का विकास भी साल—दर—साल होता गया। मंदिर से जुड़े लोग बताते है कि वर्ष 1981 की बाढ़ में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया, उसके बाद मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। मंदिर 1982 से 1984 में नए स्वरूप में बनकर तैयार हुआ। पिछले साल ही मंदिर का भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया।
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आज विश्वकर्मा पूजा दिवस
शहर में आज भगवान विश्वकर्मा का पूजा दिवस मनाया जा रहा है। मंदिरों में जहां भगवान विश्वकर्माजी की पूजा—अर्चना हो रही है, वहीं शहर के फर्नीचर, लोहे के कारखानों और वर्कशॉप में भगवान विश्वकर्मा की विधिवत पूजा-अर्चना की जा रही है। फैक्ट्रियों, मिस्त्री, शिल्पकार और औद्योगिक घरानों में भी भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जा रह है।