सबसे पहले ताड़ के झाड़ के बीज इकट्ठा किए जाते हैं। फिर इन बीजों को हाई प्रेशर वाली मशीन पर इतना क्रश किया जाता है कि इनमें से तेल निकल जाए। फिर इस तेल को फिल्टर किया जाता है और इसमें विटामिन-ए और विटामिन-ई जैसे तत्व मिलाए जाते हैं और इस फिल्टर प्रोसेस में तेल को कई प्रकार के केमिकल कम्पाउंड के जरिए प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है। फिर इसमें वेजिटेबल ऑयल मिलाया जाता है। हाइड्रोजन बॉन्ड, जिसमें बहुत हाई तापमान में मशीनों में प्रोसेस किया जाता है। यही स्टेज होती है जब वेजिटेबल ऑयल वनस्पति घी के रूप में बदल जाता है।
वनस्पति घी वेजिटेबल ऑयल का हाइड्रोजेनेटेड फॉर्म होता है। वेजिटेबल ऑयल में दो कार्बन बॉन्ड्स होते हैं और इसमें हाइड्रोजन मिलाया जाता है और हाई टेम्प्रेचर पर इसे घुमाया जाता है, जिससे ये घी जैसी ग्रेनी कंसिस्टेंसी वाला हो जाता है। वनस्पति घी में बहुत ही अधिक मात्रा में ट्रांस फैट होता है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि हमें ट्रांस फैट एसिड की जरूरत ही नहीं है, लेकिन वनस्पति तेल में इसकी मात्रा 60 फीसदी से भी ज्यादा होती है, जो कि मीट से भी बहुत ज्यादा है। डेयरी उत्पादों में ट्रांस फैटी एसिड की मात्रा करीब 2 से 5 फीसदी तक ही होती है। इसकी अधिक मात्रा न केवल आपके दिल के लिए नुकसानदायक है, बल्कि यह आपके डायबिटीज के जोखिम को भी बढ़ा सकती है। इसलिए इसे स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा नहीं माना जाता है।