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जयपुर की अनोखी गणगौर… ढाई सौ बंदूकधारी सैनिक ‘गणगौर माता‘ को देते थे गार्ड ऑफ ऑनर, बादल महल में सजती थी संगीत की महफिल

मोती बुर्ज से राजा करते थे गणगौर माता के दर्शन…

जयपुरMar 19, 2018 / 04:48 pm

dinesh

Jaipur Gangaur
जयपुर। ढूंढाड़ की गणगौर माता ईसरजी के बिना अपने पीहर जयपुर की जनानी ड्योढ़ी में ही पूजित हो रही है। दूसरी रियासतों में गणगौर के साथ शिव स्वरुप ईसरजी की शाही सवारी निकलती है। जयपुर की गणगौर माता की सवारी ईसरजी के बिना ही बाहर निकलती है। जयपुर की गणगौर के ईसरजी महाराज सालों से किशनगढ़ की रियासत में पूजे जा रहे हैं। सिटी पैलेस सूत्रों के मुताबिक जयपुर के ईसरजी को बरसों पहले किशनगढ़ रियासत में ले गए थे।

देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने बताया कि ढूंढाड़ में सुख समृद्धि का वैभव बरसाने वाली लक्ष्मी स्वरुपा गणगौर माता को पूजा के सौलहवें दिन ईसरजी के साथ ससुराल के लिए विदा नहीं कर खुद के घर में रखने का विधान भी हो सकता है। षोड्स मात्रिकाओं और शिव गणों के साथ पूजित गणगौर व ईसरजी को साहसी राजपूत अपनी सम्पन्नता को बढ़ाने के लिए ताकत के बल पर लूटकर ले जाते थे।

स्वर्ण आभूषणों व वस्त्रों में सजी धजी गणगौर निकलती थी भारी सुरक्षा बल के साथ
प्रो. राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने लिखा है कि जोबनेर के पास सिंघपुरी का राम सिंह खंगारोत मेड़ता की गणगौर व शेरगढ़ का हरराज पंवार बूंदी की गणगौर लूट लाया था। मूल्यवान स्वर्ण आभूषणों व वस्त्रों में सजी धजी जयपुर की गणगौर को जनानी ड्योढ़ी से भारी सुरक्षा बल के साथ संगीनों के पहरे में बाहर निकाला जाता।

ढाई सौ बंदूकधारी सैनिक माता को देते थे गार्ड ऑफ ऑनर
जयपुर इन्फेन्ट्री बटालियन व रिसाला के ढाई सौ बंदूकधारी सैनिक माता को गार्ड ऑफ ऑनर देने के बाद गणगौर के साथ चलते। कस्बों और गांवों में सुरक्षा के लिहाज से गणगौर ईसर को बंदूक व तलवारों के पहरे में बाहर निकाला जाता। सिंजारे से बूढ़ी गणगौर तक तीन दिवसीय गणगौर के धार्मिक व सांस्कृतिक उत्सव में ढंूढाड़ की सैन्य ताकत व वैभव का भव्य प्रदर्शन होता था।

बादल महल में सजती थी संगीत की महफिल
वर्ष 1875 के गणगौर उत्सव में ग्वालियर महाराजा सिंधिया जयपुर आए। उनके सम्मान में सवाई राम सिंह द्वितीय ने बादल महल में दरबार लगाया। अजमेर की नृत्यांगनाओं व गायिकाओं ने बादल महल में संगीत की महफिल सजाई। सन् 1907 में बीकानेर महाराजा गंगा सिंह भी सवाई माधोसिंह के बुलावे पर जयपुर की गणगौर देखने आए। वर्ष 1941 की हितैषी पत्रिका में गणगौर के बारे में लिखा है कि.. गोटे लगे कमीज और टोपी पहने बच्चे सौन्दर्य और सृष्टि के इस पर्व पर गणगौर का मेला देख फूले नहीं समा रहे थे। मिठाइयों की चाह में वे पिता की अंगुली पकड़े मेले में जा रहे हैं। बाजारों की रौनक देखने लायक है। खिलौने बेचने वालों के पास टोकरों में चिडिय़ा तोते, बिल्ली बंदर आदि खिलौने हैं।

मोती बुर्ज से राजा करते थे गणगौर माता के दर्शन
25 मार्च 1947 को सवाई मानसिंह ने चौगान के पास मोती बुर्ज से गणगौर की सवारी के दर्शन किए। राजमाता गायत्री देवी ने जयपुर की गणगौर के बारे में लिखा है कि महाराजा व सामंत व दरबारी लाल पोशाक में होते। बादल महल के शाही दरबार में संगीत व नृत्य की महफिल सजती तब जयनिवास बाग के फव्वारे चलते।

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