यकीन मानिए, आप अपनी बेटी को भले ही चांद तोड़ने के सपने दिखा रही हों…लेकिन हकीकत से आप भी अंजान नहीं है। उसे समाज की तस्वीर दिखाइएं, तो वो पहले से ही संभल सके। पूरी दुनिया में महिलाओं के खिलाफ चिरकालिक पूर्वाग्रह बरकरार है। महिलाओं को बढ़ते हुए देखना समाज को हजम ही नहीं होता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से हाल ही जारी लैंगिक सामाजिक मानदंड सूचकांक के अनुसार, Òदुनिया भर में लगभग आधी आबादी आज भी यह मानती है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष बेहतर राजनेता साबित होते हैं। 40 प्रतिशत से अधिक लोग व्यावसायिक प्रबंधन में पुरुषों को महिलाओं से अधिक सक्षम समझते हैं। हैरत की बात तो यह है कि 25 प्रतिशत लोग पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी को पीटना जायज ठहराते हैं।
रिपोर्ट का तर्क है कि ऐसे पूर्वाग्रह, महिलाओं के सामने आने वाली बाधाओं को बढ़ाते हैं। दुनियाभर के कई हिस्सों में महिला अधिकारों के हनन के उदाहरण देखने को मिलते हैं और लैंगिक समानता के कई आन्दोलन उठ खड़े हुए हैं। कई अन्य देशों में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में वृद्धि हुई है। नेतृत्व के पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व में भारी कमी भी उनके ख़िलाफ़ व्याप्त पूर्वाग्रहों को उजागर करती है। महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों के लिए उचित कार्रवाई सुनिश्चित करने में ही मानव का विकास संभव है।
28 सालों में सरकार प्रमुख के रूप में सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाएं
रिपोर्ट के मुताबिक 1995 के बाद से देश अध्यक्षों या सरकार प्रमुखों के रूप में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत रही है। 28 सालों में राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत धीमी गति से बढ़ी है। वहीं श्रम बाज़ार में प्रबन्धकीय पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी एक तिहाई से भी कम है। इस रिपोर्ट में शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति और उनके आर्थिक सशक्तिकरण के बीच एक टूटी कड़ी पर भी प्रकाश डाला गया है। महिलाए पहले से कहीं अधिक कुशल और शिक्षित तो हो गई हैं, लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं के अधिक शिक्षित होने वाले 59 देशों में औसत ***** आय अंतर पुरुषों के पक्ष में 39 प्रतिशत बना हुआ है।
इनका कहना है
Òमहिलाओं के अधिकारों को ध्वस्त करते ये सामाजिक मानदंड, व्यापक तौर पर समाज के लिए हानिकारक हैं और मानव विकास का विस्तार होने से रोकते हैंÓ
पेड्रो कॉन्सेइकाओ, प्रमुख, यूएनडीपी के मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय