विनायक को गजानन बनाने के पीछे देवराज इंद्र की भूल थी या भगवान विष्णु की लीला ? जानिए
पच्चीस साल पहले विराजमान हुए उच्छिष्ट गणपति
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि लोक कल्याण के लिए इस मंदिर की स्थापना करीब पच्चीस वर्ष पूर्व चांदी हाल निवासी पंडित शिवनारायण दवे ने की थी। बताया जाता है कि यह प्रतिमा विशेष रूप से जयपुर से बनवाकर लाई गई थी। इस मंदिर को साल में एक बार खोलने का नियम है, जो कल गणेश चतुर्थी के मौके पर खोला जाएगा। मंदिर खोलने से पहले दस हजार आहुतिया यज्ञ में दी जाती है, इसके बाद ही मंदिर खोला जाता है।
दर्शन प्रक्रिया भी अलग:
माना जाता है कि उच्छिष्ट गणपति का यह रूप, गणेश के अन्य स्वरूपों से दस गुना जल्दी फल देता है। विनायक के इस स्वरूप की पूजा करने से समृद्धि और उच्च पद की प्राप्ति होती है। शास्त्रीय नियमों के अनुसार इनके दर्शन करते समय मुंह में गुड़, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची आदि होना चाहिए। जूठे मुंह जाने पर जो आपके मुंह में हैं, उस अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की बात मानी जाती है। बताया जाता है कि यहां दर्शन करने के लिए पुरष और महिलाओं को अलग-अलग समय दर्शन करने के लिए भेजा जाता है। मान्यता के अनुसार सिंदूर और दूर्वा चढ़ाने से विवाह जल्दी तय हो जाता है।
राजस्थान के ये गणेश मंदिर, जहां पूरी होती है मनोकामना
आचार्य पंडित कमलेश ने बताया कि यह मंदिर साल में एक बार12 घंटे के लिए खुलता है, जो कि शाम 5:30 बजे से लेकर सुबह 6:30 बजे तक खोला जाता है। भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर खुलने के कई घंटों पहले ही भक्तों की भीड़ उमड़ जाती है। यह मंदिर विशेष मंदिरों में से एक है जिसके दर्शन रात को किये जाते है।
दक्षिण भारत में है मुख्य मंदिर
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, पहले के समय में गणपति के इस स्वरूप की साधना करने वाले अल्प भोजन से हजारों लोगों का भंडारा कर देते थे। उच्छिष्ट गणपति का एक मंदिर दक्षिण भारत में तिरुनेलवेली के समीप स्थित है। यह मंदिर करीब तेरह सौ वर्ष पुराना बताया जाता है।