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भारत बंद और SC-ST आरक्षण पर आमने-सामने हो गए दो आदिवासी नेता, जानिए किसने क्या कहा

देशभर में SC-ST समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC-ST आरक्षण में क्रिमीलेयर और उपवर्गीकरण के फैसले के खिलाफ भारत बंद का आह्वान किया है

जयपुरAug 21, 2024 / 05:45 pm

Anil Prajapat

Bharat band photo
जयपुर। देशभर में SC-ST समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC-ST आरक्षण में क्रिमीलेयर और उपवर्गीकरण के फैसले के खिलाफ भारत बंद का आह्वान किया है। इस बंद को कई दलित और आदिवासी संगठनों ने बुलाया है, जिन्हें विभिन्न राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है।
राजस्थान में इस मुद्दे पर दो प्रमुख आदिवासी नेता आमने-सामने आ गए हैं। भारत आदिवासी पार्टी के बांसवाड़ा से सांसद राजकुमार रोत ने बंद का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘भाई-भाई को लड़ाने वाला’ करार दिया। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम जजों द्वारा ST-SC आरक्षित समाज को आपस में लड़ाने के फैसले का हम विरोध करते हैं।”
दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी के नेता किरोड़ी लाल मीणा ने इस बंद को ‘बेतुका’ बताया है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया। मीणा ने कहा कि वह कोर्ट की भावना के साथ हैं और क्रीमीलेयर की अवधारणा का समर्थन करते हैं।
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 किरोड़ी लाल मीणा , सांसद राजकुमार रोत

SC-ST समुदाय में विरोध की लहर

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, सभी SC-ST जातियां और जनजातियां समान वर्ग नहीं हैं और कुछ जातियां अन्य की तुलना में अधिक पिछड़ी हो सकती हैं। कोर्ट ने कोटे के भीतर कोटे की बात कही थी, जिसे लेकर देशभर में विरोध शुरू हो गया है।
SC-ST समुदाय का कहना है कि इस फैसले से आरक्षित समाज में फूट पड़ सकती है और इसे लेकर आज पूरे देश में भारत बंद का आयोजन किया गया है। कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस बंद का समर्थन करते हुए कोर्ट के फैसले को अस्वीकार्य बताया है।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया कि SC-ST जातियां समान नहीं हैं और कुछ जातियां अधिक पिछड़ी हो सकती हैं। कोर्ट ने आरक्षण के भीतर उपवर्गीकरण की बात की, जिसने SC-ST समुदाय में व्यापक असंतोष उत्पन्न कर दिया है।
बुधवार को भारत बंद में विभिन्न संगठनों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए सरकार से इस फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है कि यह निर्णय समाज में विभाजन और असमानता को बढ़ावा देगा, और आरक्षण के मूल उद्देश्य को कमजोर करेगा।

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