यहां पर पैंथरों को मौसमी बीमारी, लकवा, मिर्गी समेत कई बीमारियों का उपचार किया गया है। उनकी नसबंदी भी की जा चुकी है। इनके अलावा बाघ- बाघिन, शेर- शेरनी की बच्चेदानी का ऑपरेशन, ट्यूमर, आंखों का ऑपरेशन, पूंछ की सर्जरी, पेट के ट्यूमर को निकाला जा चुका है। साथ ही कई गंभीर घावों का भी इलाज किया जा चुका है।
इसी वर्ष रणथम्भौर से लाए गए एक भालू के घावों का भी उपचार किया गया। वर्तमान में यहां कुल आठ पैंथर रह रहे है। जिनमें 3 मादा व 5 नर है। इनमें एक साढ़े तीन माह की मादा शावक और एक 18 वर्षीय बुजुर्ग है। इन पैंथरों में महज दो मादा को ही वापस जंगल में छोड़ा जा सकता है। अन्य वापस छोड़े जाने की स्थिति में नहीं है। एक मिर्गी का रोगी है तो, दो हिंसक है।
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गंभीर हालत में लाए जाते वन्यजीव
अस्पताल के वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरविंद माथुर ने बताया कि इस रेस्क्यू सेंटर को वर्ष 2003 में बनाया गया था। वन्य जीवों के इलाज के लिए अस्पताल भी बनाया गया। शुरूआत में यहां सर्कस से छुडाए गए करीब 50 बाघ- बाघिन, शेर-शेरनी को रखा गया था। उनके कई जटील ऑपरेशन, घावों के इलाज इत्यादि किए गए। वर्ष 2016 में यहां जैविक उद्यान बनाया गया। यहां चिडियाघर से समस्त वन्यजीव शिफ्ट किए गए। इसके बाद से उनका यही उपचार किया जा रहा है। डॉ. माथुर के मुताबिक इस अस्पताल में 30 से ज्यादा गंभीर वन्यजीवों का उपचार किया जा चुका है। वर्तमान में आसपास के जिलों से गंभीर हालत में रेस्क्यू होने वाले पैंथर, हाइना, नीलगाय, भालू का इलाज के लिए लाए जाते है।
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माघव का मिर्गी का इलाज, भालू के इलाज का छापा शोधपत्र
– यहां इस वर्ष जनवरी माह अचरोल से नर पैंथर को बीमार हालत में लाया गया। जांच में उसमें न्यूरोलोजिकल डिसऑर्डर विद हाइपोथर्मिया से ग्रस्त था। यह पहला ही केस था,जो मिर्गी से ग्रस्त था, उसे दौरे आते थे। वो अब ठीक है। इसी प्रकार भालू के मुंह के ट्यूमर की सर्जरी की गई थी। इसका शोध पत्र भी प्रकाशित हुआ था।
एनआइसीयू में चल रहा राधा का इलाज
– अस्पताल में शावकों के लिए एनआइसीयू बनाई गई है। जिसमें आधुनिक उपकरण भी रखे गए हैं। यहां तीन शावकों का इलाज किया गया है। वर्तमान में एक शावक राधा का इलाज चल रहा है। सितंबर माह में मां से बिछडने पर लाया गया था। उस वक्त इसका वजह 500 ग्राम था, आज 4.5 किलो हो चुका है। दूसरे वन्यजीवों को अलग से वार्ड की तरह बनाए गए पिंजरे में रखा जाता है।
तनावमुक्त व प्राकृतिक वातावरण
– रेंजर नितिन शर्मा ने बताया कि वन्यजीवों को यहां तनावपूर्ण व प्राकृतिक माहौल दिया जाता है। उनको मौसम परिवर्तन के साथ रोग प्रतिरोधक दवाइया दी जाती है। उनकी नियमित स्वास्थ्य जांच भी होती है। सर्दी – गर्मी से बचाने के विशेष इंतजाम भी किए जाते हैं।