जयपुर के करीब गांव में सात दिन से सो भी नहीं पा रहे ग्रामीण, रात भर जागकर दे रहे पहरा
जयपुर से 25 किलोमीटर जमवारामगढ़ के जंगल में घूम रहा है बाघ एसटी- 24, सांऊ गांव व आसपास की ढाणियों में दे रहे दिन-रात पहरा, डंडा-कुल्हाड़ी रखते साथ, वन विभाग की टीम ट्रैकिंग करने में रही नाकाम, केवल पगमार्क के सहारे लगा रही अनुमान
देवेन्द्र सिंह राठौड़ / जयपुर। हाथों में कुल्हाड़ी-डंडे, चौकस लेकिन आशंकित नजरें। 4-4 की टोली में घर से निकलना और रातभर बारी-बारी से पहरेदारी… पिछले सात दिनों से सांऊ गांव और उसके आसपास की ढाणियों के लोगों की दिनचर्या बदल चुकी है। पहले जहां निश्चिंतता और बेफिक्री थी, अब चौबीस घंटे भय और आशंका है…पता नहीं कब, कौनसी झाड़ी में से निकलकर बाघ आ जाए!
सरिस्का के जंगल से निकलकर जमवारामगढ़ क्षेत्र में घूम रहे बाघ एसटी-24 का पता लगाने में वन विभाग नाकाम रहा है। हाल यह है कि टीम 6 दिन बाद भी उसे ट्रैक नहीं कर पाई है। विभाग का ट्रैकिंग सिस्टम फेल होने से स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल है।
ढाणियों में पहुंची पत्रिका टीम शनिवार को राजस्थान पत्रिका की टीम सांऊ गांव पहुंचीं। टीम ने यहां कांकड़ की ढाणी, खोड़ों की ढाणी, नंदीआला की ढाणी, भृतहरि मंदिर समेत आसपास इलाके में करीब 12 किलोमीटर तक पड़ताल की।
मवेशियों का शिकार, विभाग लाचार राजधानी से 25 किलोमीटर दूर जमवारामगढ़ वन अभयारण्य क्षेत्र में घूम रहे बाघ एसटी-24 का अभी तक पुख्ता सुराग नहीं लगा है। वह मवेशियों को शिकार बनाता जा रहा है और वन विभाग की टीम उसके पगमार्क खंगाल रही है।
प्रशासन से नाराज ग्रामीण स्थानीय लोगों में वन विभाग व प्रशासन को लेकर नाराजगी है। उनका कहना है कि अजबगढ़ से आए बाघ ने छह दिन से यहां दहशत मचा रखी है। वह पहाड़ पर ही घूम रहा है और रोजाना मवेशियों को निशाना बना रहा है। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है क्योंकि पशुधन ही उनकी आजीविका का साधन है। अब तो बाघ ढाणियों में घुस रहा है। इससे जान को भी खतरा बना हुआ है। यहां कई लोग ढाणियों में रहते है। उनमें भी दूर-दूर घर है। कभी भी अनहोनी हो सकती है।
कुल्हाड़ी-डंडा साथ रखने की मजबूरी नंदीआला की ढाणी निवासी रामस्वरूप मीणा ने बताया कि बाघ के भय से हाथ में लकड़ी, कुल्हाड़ी आदि लेकर निकलना पड़ रहा है। खेतों में जाने के लिए तीन-चार लोगों को साथ जाना पड़ रहा है। अब तो, अकेले मवेशी चराने भी नहीं जा पा रहे।
आंगनबाड़ी के बच्चों पर भी खतरा स्थानीय युवक हंसराज मीणा ने बताया कि पहाड़ के समीप आंगनबाड़ी संचालित हो रही है। इसमें 30 से ज्यादा बच्चे पैदल ही पढऩे आते है। उन पर खतरा मंडरा रहा है। इतना ही नहीं, भृतहरि मंदिर में आने वाले भक्तों पर भी खतरा है। यहां भी बाघ ने एक मवेशी का शिकार किया था।
रात-दिन पहरा देने को मजबूर कल्याण मीणा ने बताया कि पहरा देना पड़ रहा है। दिन में पांच-सात लोग एक जगह एकत्र रहते हैं। रात को भी पहरा देते है। सो भी नहीं पा रहे। खतरा है साहब क्या करें।
पड़ताल में हो रही खानापूर्ति ग्रामीणों का आरोप है कि वनकर्मी बाघ को ढूंढऩे के नाम पर खानापूर्ति कर रहे हैं। गाडिय़ों में बैठकर आते हैं और चले जाते हैं। हर वक्त खतरे में रहने के बावजूद प्रशासन ने भी उनकी सुध नहीं ली।
शायद बाघ पहाड़ पर ही है वन विभाग की टीम लगी हुई है। लोकल स्तर पर मॉनिटरिंग की जारी है। लेकिन अभी स्थिति साफ नहीं है कि बाघ कहां है। स्थानीय रेंजर प्रेेम प्रकाश मीणा का कहना है कि अभी तक बाघ की कोई खबर नहीं है। उसके मूवमेंट का पता ही नहीं चल रहा। संभवत: वह पहाड़ पर ही है। टीम को पहाड़ पर भेजेंगे। – डीपी जागावत, डीएफओ, सरिस्का
सरिस्का का हिस्सा, तुरंत मॉनिटरिंग हों जमवारामगढ़ में पहले बाघ रहे हैं। यह जंगल सरिस्का का जंगल का हिस्सा है। यहां बाघ के लिए पर्याप्त प्रेबेस (भोजन) है। ऐसे में उसे अजबगढ़ लौटने में समय लग सकता है। इसके लिए इसे जल्द से जल्द ढंूढक़र निगरानी की जरूरत है ताकि जानवर व मानव के बीच संघर्ष की स्थिति नहीं बने।
दिनेश दुर्रानी, सचिव, सरिस्का फाउंडेशन
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