यूके बेस्ड संस्था ब्रुक इंडिया की स्टडी रिपोर्ट में गधों की संख्या कम होने का यही प्रमुख कारण बताया गया है। इसका असर जयपुर के भावगढ़ बंध्या में शारदीय नवरात्र में चार दिवसीय खलकाणी माता के गधा मेले पर भी पड़ा है। करीब दो दशक पहले मेले में पूरे देश से 25000 से ज्यादा गधे बिकने आते थे। इस बार मेले में केवल 15 गधे ही बिकने आए।
देश में बचे सिर्फ एक लाख बीस हजार
मेले में लद्दाख, अफगानिस्तान, काठमांडू, सिंध, पंजाब, गुजरात तक से गधे आते थे। पहले तो आयोजक इसे गधों की उपयोगिता कम होना मान रहे थे, लेकिन रिपोर्ट में पशुपालन विभाग को सोचने पर मजबूर कर दिया है। 2019 की लाइव स्टॉक पशु गणना के मुताबिक देश में सिर्फ 1.2 लाख गधे ही बचे थे, यह संख्या 2012 की पशु गणना के मुकाबले औसतन 61.23 फीसदी कम दर्ज की गई।हर साल 60 लाख गधों का कत्ल
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में गधे की खाल का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है। पुरुषों की मर्दानगी बढ़ाने के लिए खाल से दवा बनाई जाती है। दुनियाभर में इस दवा की बिक्री इतनी है कि हर साल विश्व में 60 लाख गधे मार दिए जाते हैं। इसके चलते भारत समेत दूसरे देशों से अवैध तरीके से गधों को चीन मंगवाया जा रहा है। ब्रुक इंडिया ने की स्टडी में कहा गया है कि भारत के गधों को नेपाल के रास्ते चीन भेजा जा रहा है। ब्रुक इंडिया ने भारत सरकार के एनिमल हसबेंडरी व डेयरी डिपार्टमेंट को रिपोर्ट सौंप दी है।राजस्थान समते इन 6 राज्यों पर फोकस
आरटीआई एक्ट के तहत डीजीएफटी से 2016 से 2019 तक गधों और उसकी खाल निर्यात के संबंध में जानकारी मांगी। लेकिन कोई डाटा नहीं होने से जानकारी नहीं मिल सकी। इसके बाद ब्रुक इंडिया ने लुधियाना के शरत वर्मा से एक स्टडी करवाई। स्टडी में खुलासा हुआ कि देश में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, बिहार, यूपी व गुजरात के गधों को चीन भेजा जा रहा है। गधों के मेले में पहले दूर दूर से गधे आया करते थे, लेकिन रिपोर्ट सामने आई तो सभी भौंचक रह गए। सरकार को ऊंटों के संरक्षण की तरह गधा संरक्षण के लिए भी ठोस कदम उठाने चाहिए।
- उम्मेद सिंह राजावत, अध्यक्ष, अखिल भारतीय गर्दभ मेला विकास समिति
यह भी पढ़ें