जयपुर. शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) में कटौती से हजारों निर्धन परिवारों के बच्चों का नामचीन स्कूलों में पढऩे का सपना पूरा नहीं होगा। अब तक नि:शुल्क प्रवेश के लिए अभिभावक की पात्रता आय सीमा सालाना 2.5 लाख थी। नए सत्र से इसमें बदलाव की तैयारी है।दायरा बीपीएल परिवारों और संभवत: एससी, एसटी श्रेणी तक सीमित किया जा रहा है। इसे देखते हुए पत्रिका ने विश्लेषण किया तो जो आंकड़े सामने आए वो काफी कुछ बयां कर रहे हैं। आवेदन के दायरे से सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा वर्ग के बाहर होने से सरकार अरबों रुपए बचाने में कामयाब हो जाएगी। सरकार के इस खेल से शिक्षा का अधिकार कानून उद्देश्य से पिछड़ जाएगा। शिक्षा से गरीबों की बढ़ेगी दूरी आरटीई के तहत मांगी गई जानकारी में सामने आया कि तीन शैक्षणिक सत्रों में राज्य में 5,55,966 बच्चों को दाखिला दिया है। श्रेणी वार देखें तो इस अवधि में बीपीएल के प्रवेश करीब 65 हजार हुए हैं। वहीं 2015-16 में करीब 20,853 बीपीएल बच्चों के ही आवेदन आए थे जिनमें 15 हजार को प्रवेश मिला था। यदि नई व्यवस्था में सामान्य और ओबीसी के बच्चों को बाहर निकालते हैं तो नि:शुल्क प्रवेश का आंकड़ा पांच गुणा तक कम हो जाएगा। क्या है शिक्षा का अधिकार कानून?आरटीई 2009 के तहत निजी स्कूलों में पहली कक्षा में 25 प्रतिशत सीटों पर वंचित तबके के बच्चों को नि:शुल्क दाखिला देने की बात है। इस के बदले सरकार निजी स्कूल को फीस का पुनर्भरण करती है। कानून के तहत नि:शुल्क दाखिले के लिए योग्य बच्चों के लिए आय सीमा निर्धारण करना सरकार के क्षेत्राधिकार में है। राज्य में अब तक यह 2.5 लाख रुपए सालाना थी। आरटीई के मामले में सक्रिय रहे प्रांजल सिंह का कहना है कि आय का दायरा कम करने से इसका फायदा कम लोगों तक सिमट जाएगा। संभवत: विधानसभा के सत्र समाप्ति के बाद बदली हुई प्रक्रिया सामने आ जाएगी।