सवाई जयसिंह द्वितीय ने कायम किया बाल्मिक रामायण की कई परम्परा जौहरी बाजार स्थित रास्ते में रामलला का मंदिर भी है। सिटी पैलेस के सीतारामद्वारा में विराजमान भगवान को मुख्य मानते हुए महाराजा सबसे पहले सीतारामद्वारा में दर्शन करता था। युद्ध और राजा की शाही सवारी में सीतारामजी का रथ आगे रखा जाता। बालानंद मठ से जुड़े एडवोकेट देवेन्द्र भगत के मुताबिक सवाई जयसिंह द्वितीय ने बाल्मिक रामायण के आधार पर कई परम्पराओं को कायम किया। दशहरे पर नीलकंठ पक्षी को आजाद करने और दशहरा कोठी पर शमी पूजन का रिवाज आज भी निभाया जाता है। दीपावली पर बलिराज की पूजा और दरवाजे पर घास की रोटी पूजन के रिवाज थे। जयपुर फाउंडेशन के सियाशरण लश्करी ने बताया कि दशहरे पर महाराजा चांदी की टकसाल में हीरे मोती आदि नव रत्नों से प्रतीकात्मक रूप से हल बीज की बुवाई करते थे। बाल्मिक रामायण में अयोध्या के रामदल का सफेद ध्वज बताया है, जिसमें कचनार के झाड़ वृक्ष का निशान है। आमेर नरेश मानसिंह प्रथम तक सफेद ध्वज रहा। अफगानिस्तान सहित पांच राज्यों की जीत के बाद पचरंगा झंडा बनाया गया। झंडे में झाड़ का पेड़ होने से जयपुर की मुद्रा को झाड़शाही कहा जाता था।
सवाई जयसिंह ने करवाए थे राजसूर्य, वाजपेय और अश्वमेध जैसे महान यज्ञ आमेर महल में अयोध्या की तर्ज पर बनी सीता रसोई में रामायण कथा पर आधारित बेहतरीन चित्र बने हैं। रियासत के सरकारी परवानों पर श्री सीतारामो जयति लिखा जाता रहा। भगवान श्रीराम की तरह सवाई जयसिंह ने भी राजसूर्य, वाजपेय और अश्वमेध जैसे महान यज्ञ करवाए। अयोध्या की सरयू की तरह जयपुर में नदी नहीं होने से प्रतीक के रुप में द्रव्यवती का पानी लाकर चांदपोल में चौपड़ों के बीच होते हुए एक नहर निकाली गई, जिसके अवशेष मेट्रो की खुदाई के समय निकले हैं। नवगृह के आधार पर बसे जयपुर के एक भाग का नाम चौकड़ी रामचन्द्रजी रखा गया। छोटी चौपड़, चंादपोल के अलावा रास्तों में राम के मंदिर हैं। रावण वध करने वाले विजय राघव का मंदिर बालानंदजी के मठ में है।
सवाई जयसिंह कल्पद्रुम में लिखा है यह दोहा ‘बड़े वंश श्रीराम के
कछवाहे दल साजि
आये नरवर ते कियो
देश ढूंढाड़ हुं राजि’