ये शिक्षक नौकरी छोड़ राजनीति में आए
गुलाबचंद कटारिया: शिक्षक से राजनीति में कदम रखने लोगों की सूची मे असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया का नाम शुमार है। आजादी से पहले 13 अक्टूबर 1944 को उदयपुर में जन्मे कटारिया ने शिक्षा पूरी करने के बाद शिक्षक के तौर पर सेवाएं दी। उन्होंने टीचर का कार्य करते हुए करते राजनीति में कदम रखा। वे आठ बार विधायक और एक बार सांसद रहे। वे वर्तमान में पंजाब के राज्यपाल है। डॉ. सीपी जोशी: पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व विधानसभा स्पीकर डॉ. सीपी जोशी भी राजनीति में आने से पहले मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं। 29 जुलाई 1950 को जन्मे सीपी जोशी वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में महज एक वोट से चुनाव हार गए थे। उन दिनों में मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे डॉ. जोशी का नाम था लेकिन विधानसभा चुनाव हारने के कारण उनका सपना अधूरा रह गया था। वे भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडल में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय में मंत्री रहे थे।
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डॉ. सुभाष गर्ग: भरतपुर के पीपला गांव में 15 अगस्त 1959 को जन्मे डॉ. सुभाष गर्ग ने पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1982 से 2000 तक एमएसजे कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दी। बाद के वो राजनीति में आ गए। भरतपुर शहर विधानसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद डॉ. सुभाष गर्ग को कांग्रेस सरकार ने पहले चिकित्सा राज्य मंत्री बनाया था और फिर तकनीकी शिक्षा राज्य मंत्री का दर्जा दिया था। वे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं।
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मास्टर भंवरलाल मेघवाल: चुरू जिले के सुजानगढ़ में 2 जुलाई 1948 को जन्मे मास्टर भंवरलाल मेघवाल 41 साल तक राजनीति में सक्रिय रहे। वे टीचर की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे। वे सुजानगढ़ विधानसभा सीट से पांच बार विधायक बने थे। गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। राजनीति में आने से पहले वे सुजानगढ़ के राजकीय झंवर स्कूल में बतौर शारीरिक शिक्षक रहे थे। पब्बाराम बिश्नोई: जोधपुर जिले के फलोदी तहसील के लोहावत बिस्नावास गाव में पब्बाराम बिश्नोई का जन्म 24 मार्च 1951 को हुआ था। वे भी राजनीति में आने से पहले शिक्षक थे। शिक्षक के तौर पर दूर-दराज के रेगिस्तानी इलाके में सेवाएं देने के बाद वे राजनीति में आए थे। वे पहली बार फलोदी साल 2013 में विधायक चुने गए थे।
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जोगेश्वर गर्ग : पूर्व मंत्री और सरकारी मुख्य सचेतक रहे जोगेश्वर गर्ग ने भी अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर की थी। उन्होंने आदर्श विद्या मंदिर चौहटन और बाड़मेर में एक साल तक शिक्षक के तौर पर सेवाएं दी। इसके बाद वे बैंक मैनेजर बन गए और फिर नौकरी छोड़कर राजनीति में आए।