पहले यहां आठ इंच की अष्टधातु निर्मित भगवान सूर्य नारायण की आकर्षक प्रतिमा स्थापित थी। इस प्राचीन सूर्य मंदिर में सूर्य नारायण अपनी पत्नी के साथ स्थापित किए गए हैं। रविवार के दिन दूर दूर से भक्त मंदिर में सूर्यदेव के दर्शन करने आते हैं। मंदिर से सम्पूर्ण जयपुर शहर दिखाई देता है, एक झलक में जयपुर को देखने का यह नजारा पर्यटकों को खूब भाता है। यहां सूर्य सप्तमी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। सूर्यदेव की आरती के बाद गलता घाटी से सप्त घोड़ों से सुसज्जित भगवान सूर्य की रथयात्रा निकाली जाती है।
महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को बसाने से पूर्व नगर की सुख—शांति के लिए चारों दिशाओं में मंदिर बनवाए थे| पूर्व दिशा में भगवान सूर्यदेव, पश्चिम में चांदपोल स्थित हनुमानजी, दक्षिण में मोतीडूंगरी के गणेशजी तथा उत्तर में गढ गणेशजी को मंदिर बनवाकर विराजमान किया गया था| जयपुर रियासत के राजा सूर्यवंशी थे सबसे पहले भगवान सूर्य का मंदिर निर्मित कराया गया।
मंदिर में सूर्य भगवान के साथ उनकी पत्नी का विग्रह स्थापित है। एक अन्य दूसरे विग्रह में सूर्य देव झूले पर विराजमान हैं। वास्तु के नजरिए से यह मंदिर अनोखा है। सूर्य मंदिर न केवल आध्यात्मिक, धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल है बल्कि जयपुर का सूर्योदय और सूर्यास्त बिंदु भी है। जयपुर की सूरज की पहली और आखिरी 90 अंश की किरण इसी मंदिर पर पड़ती है।