भरतपुर ( Bharatpur ) के इतिहास पर किताब लिखने वाले महेंद्र सिंह सिकरवार ने कहा कि युद्ध के बाद सदाशिव नहीं रहे तो घायल महिलाओं और सैनिकों को महाराजा ने भरतपुर में शरण दी थी। महीनों तक भोजन व उपचार की व्यवस्था की थी। आगरा का लाल किला पानीपत की लड़ाई से पहले महाराजा सूरजमल के अधीन था। महाराजा ने केवल बृज भाषा बोली, लेकिन फिल्म में उन्हें अलग भाषा बोलते हुए दिखाया गया है।
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा का कहना है कि फिल्म पानीपत में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का विरोध नजर आ रहा है। इतिहास पर देखें तो वर्ष 1760 में भारत की देशी रियासतों में मराठा व अन्य के लिए अफगान के सम्राट अहमद शाह अब्दाली को भारत में आमंत्रित किया था। कटक से दिल्ली तक अहमद शाह का विरोध किसी ने नहीं किया। वह बेझिक दिल्ली तक आया। किसी भी देशी राजा महाराजाओं ने उन पर एक भी गोली नहीं चलाई और न ही म्यान से तलवार निकाली। अब्दाली को भरतपुर रियासत के महाराजा सूरजमल की शक्ति और वैभव की पूरी जानकारी थी। इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा बताते हैं कि अब्दाली ने महाराजा सूरजमल को दूत के माध्यम से मराठाओं से युद्ध में उनका सहयोग करने का संदेश भेजा। संदेश में कहा कि मेरा युद्ध भारत से नहीं बल्कि मराठाओं से है। महाराजा सूरजमल ने इस पर विचार के लिए समय मांगा। इधंर, सदाशिव भाऊ मराठा ने अपनी चालीस हजार सेना के साथ अब्दाली के अभियान को रोक दिया।
वहीं भाऊ ने सूरजमल के पास अपने सेना पति होलकर व अन्य को इस आशय के लिए भेजा कि भारत में हिंदू राज स्थापित कना है। आप मुस्लिम आक्रमणकारी अब्दाली से युद्ध में मेरा सहयोग करें। सूरजमल दूरदृष्टि व कुशल शासक थे। उन्होंने भाऊ को सुझाव दिए। बताया कि अब्दाली के पास दो लाख सेनिक और आपके पास 40 हजार सेनिक हैं। इनसे गर्मी में युद्ध करो, क्योंकि भारत की गर्मी इनसे बर्दाश्त नहीं होगी। ये मैदान छोड़कर भाग जाएंगे। उन्होंने जो भी सुझाव भाऊ को दिए वह नहीं माने। इसलिए युद्ध में पराजित हुए। युद्ध के बाद घायलों का छह माह तक उपचार, भोजन व वस्त्र आदि की व्यवस्था महाराजा सूरजमल ने कराई। स्वस्थ होने के बाद उन्हें सुरक्षित उनके राज्य में जाट सेना छोड़कर आई।