सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि स्टाम्प ड्यूटी कम चुकाने या बिल्कुल नहीं चुकाने पर भी समझौते का दस्तावेज मान्य है। यह ऐसी कमी है, जो ठीक की जा सकती है। इस कारण ऐसा दस्तावेज अस्वीकार्य हो सकता है, लेकिन अमान्य नहीं हो सकता। साथ ही कहा कि ऐसे समझौते से संबंधित विवाद के निस्तारण के लिए मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) की नियुक्ति भी की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच ने यह व्यवस्था दी। इस साल अप्रैल में मैसर्स एन.एन. ग्लोबल मर्केंटाइल प्रा. लिमिटेड बनाम मैसर्स. इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड प्रकरण में पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 3:2 के बहुमत से माना था कि समझौते के दस्तावेज पर स्टाम्प ड्यूटी नहीं चुकाई है तो उसमें मध्यस्थता की कार्यवाही नहीं हो सकती।
सात न्यायाधीशों की बेंच ने पलटा फैसलासात न्यायाधीशों की बेंच ने मैसर्स एन.एन. ग्लोबल मर्केंटाइल प्रा. लिमिटेड तथा भास्कर राजू प्रकरण में इसे पलट दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायाधीश संजय किशन कौल, न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि स्टाम्प ड्यूटी नहीं चुकाने से समझौता शून्य या अप्रवर्तनीय नहीं हो सकता। हालांकि ऐसा दस्तावेज साक्ष्य में अस्वीकार्य होता है।
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एग्रीमेंट को शून्य घोषित नहीं करताफैसले में स्पष्ट किया कि कोई समझौता साक्ष्य में स्वीकार्य होते हुए भी शून्य और अप्रवर्तनीय हो सकता है। अदालत ने कहा कि स्टाम्प एक्ट उचित स्टाम्प ड्यूटी बिना किया गया एग्रीमेंट को शून्य घोषित नहीं करता।
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