राजस्थान में कृषि महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा में अपने-अपने वर्ग में पूरे प्रदेश में अव्वल रहकर छात्राओं ने नजीर पेश की। समीपवर्ती गांव रोजड़ी निवासी ममता गुर्जर ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा में पूरे प्रदेश में एमबीसी वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। ममता के संघर्ष की कहानी इसलिए भी रोचक है कि ममता के पिता रामलाल गुर्जर दिहाड़ी मजदूर हैं और 12वीं तक पढ़े हैं जबकि मां निरक्षर है। ममता 11 साल की थी तो 2013 में उसकी शादी हो गई।
ममता पढ़ना चाहती थी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उसने पढ़ाई का प्रण कर लिया। माता-पिता ने भी साथ दिया। ममता के ससुराल वालों ने भी कहा कि अगर ममता पढ़ना चाहती है तो उन्हें आपत्ति नहीं है। ममता ने दसवीं तक गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। पढ़ाई के साथ-साथ खेत पर भी काम किया। भैसों का दूध दुहने के बाद रोज डेयरी पहुंचाती थी। रात के समय देर तक पढ़ाई करती। लेकिन गाइड करने वाला कोई नहीं था। ऐसे में केमिस्ट्री और बायोलॉजी के शिक्षक उसके मेंटोर गिरधारी ढकरवाल ने कृषि शिक्षा के बारे में बताया। जोबनेर के श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विवि. में पढ़ने की इच्छा थी। शिक्षक गिरधारी ने गाइड किया और अपनी मेहनत के बलबूते ममता ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
दादी को गोबर उठाने में होती थी परेशानी, ममता ने कर दिया कमाल, अब जापान जाने की तैयारी
पिता की चप्पल जूते की दुकान… बेटी ने पाया मुकाम
एससी वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली शालू कुमारी ने भी विपरीत परिस्थितियों में अध्ययन कर पूरे राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। शालू के पिता हेमंत कुमार की जूते चप्पल की दुकान है। माता-पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन शालू ने बचपन से ही कृषि क्षेत्र में उच्च शिक्षा का सपना देखा जो पूरा किया। तीनों छात्राओं ने मेंटोर के मार्गदर्शन को सफलता श्रेय दिया।
राजस्थान में यहां महिला किसान ने तपते धोरों में उगा दिए सेब, सौ पौधों का बगीचा किया तैयार
पिता के जाने के बाद मां ने मनरेगा में काम कर पढ़ाया… छूआ आसमां
समीपवर्ती गांव डेहरा निवासी छात्रा सोनम वर्मा ने एससी वर्ग में चौथा स्थान प्राप्त किया है। सोनम के पिता सेवाराम वर्मा का कैंसर के चलते 2017 में निधन हो गया। सोनम के सामने आगे पढ़ाई का संकट हो गया लेकिन सोनम ने हिम्मत नहीं हारी उसने 12वीं तक की शिक्षा राउमावि. डेहरा से की। पिता की मृत्यु के बाद एक बार तो पढ़ाई छोड़ने के हालात बने लेकिन मां ने साथ दिया और मनरेगा में मजदूरी कर बच्चों को पढ़ाया। मां मजदूरी करने जाती तो वह घर को संभालती थी लेकिन कृषि महाविद्यालय में एडमिशन का सपना जिंदा रखा और आखिरकार वह सफल हुई। सोनम ने बताया कि उसकी मंजिल अधूरी है, वह आईएएस बनना चाहती है। सोनम ने बताया कि आर्थिक परेशानी के चलते वह जंगल में बकरियां चराने भी जाती थी।