scriptउत्तर भारत के बड़े संस्थानों में इन मशीनों की कमी लेकिन RU में नहीं हो रही कद्र | Students troubled by the problem of resources in Rajasthan University | Patrika News
जयपुर

उत्तर भारत के बड़े संस्थानों में इन मशीनों की कमी लेकिन RU में नहीं हो रही कद्र

राजस्थान विश्वविद्यालय: संसाधनों के मेंटेनेंस के पैसे नहीं…टेस्टिंग पर पांच गुणा खर्च। छात्रों को विवि के बाहर से 500 रुपए देकर सैंपल टेस्ट करना पड़ रहा है, जबकि विवि में टेस्ट के 100 रुपए लिए जाते हैं।

जयपुरApr 02, 2023 / 02:35 pm

Shipra Gupta

उत्तर भारत के बड़े संस्थानों में इन मशीनों की कमी लेकिन RU में नहीं हो रही कद्र

उत्तर भारत के बड़े संस्थानों में इन मशीनों की कमी लेकिन RU में नहीं हो रही कद्र

जयपुर। राजस्थान विश्वविद्यालय उत्तर भारत के नामचीन शैक्षिक संस्थानों में गिना जाता है। विश्वविद्यालय में शोध के लिए काम आने वाली मशीनें राज्य में कहीं ओर नहीं है। लेकिन विश्वविद्यालय में संसाधन होते हुए भी उनकी कद्र नहीं हो पा रही है। इससे शोधार्थियों को रिसर्च करने में आए दिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संसाधनोें के मेंटीनेंस के अभाव में विज्ञान उपकरण केंद्र (USIC) में पांच मशीनों की हालत खस्ता है।इनमें से तीन मशीनें तो चार माह से बंद पड़ी हैं। इन मशीनों के मेंटीनेंस के लिए सालाना पांच लाख रुपए की जरूरत है। लेकिन इनकी मेंटीनेंस नहीं हो पा रही है, जिसका खमियाजा भौतिक शास्त्र, रसायन विज्ञान, प्राणी शास्त्र, वनस्पति शास्त्र विभाग के शोध छात्रों को उठाना पड़ रहा है। इन छात्रों को विवि के बाहर से 500 रुपए देकर सैंपल टेस्ट करना पड़ रहा है, जबकि विवि में टेस्ट के 100 रुपए लिए जाते हैं।

राजस्थान विश्वविद्यालय के विज्ञान उपकरण केंद्र में चार महीने से बंद करोड़ों की मशीन

सेम (स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप)

— यह मशीन 2012 से विवि में है।
— इस मशीन की कीमत 1 करोड़ रुपए है।
— मशीन से अब तक 1200 सैंपल टेस्ट हो चुकें।
इस मशीन का उपयोग: पदार्थ के नैनो कणों का आकार, आकृतियां और गुणों पर शोध करने के लिए।


टेम (ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप)

— यह मशीन 2014 में विवि में आई थी।
— इस मशीन की कीमत 5 करोड़ रुपए है।
— यह मशीन 4 महीने से बंद है।
इस मशीन का उपयोग: यह मशीन सेम से एडवांस है। पदार्थ के नैनो कणों का आकार, आकृतियां और गुणों पर शोध करने के लिए काम आती है।

स्क्विड: (मैग्नेटिक प्रॉपर्टी मिस्योरमेंट सिस्टम)

— यह मशीन 2015 में विवि में आई थी।
— इस मशीन की कीमत 5 करोड़ रुपए है।
— यह मशीन 2 साल से बंद पड़ी है।
इस मशीन का उपयोग: पदार्थों के चुंबकीय गुणों के शोध में काम आती है।

स्थायी तकनीकी स्टाफ नहीं

विश्वविद्यालय में मशीनें तो करोड़ों की हैं, लेकिन इन्हें संचालित करने के लिए स्थायी तकनीकी स्टाफ नहीं है। विभागों में अस्थायी स्टाफ से काम चलाया जा रहा है। अस्थायी स्टाफ नहीं होने से मशीनें बंद रहती हैं।
क्या कहते है शोधार्थी

शोधार्थियों ने बताया कि सांइस लैब मेें रिसर्च करने के लिए कैमिकल बाहर से लाना पड़ता है। न ही टेस्टिंग की सुविधा है, जिसके चलते उन्हें टेस्टिंग के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिसमें 15 से 20 हजार रुपए का खर्चा आता है।
विज्ञान उपकरण केन्द्र के निदेशक प्रो. आर.के. सिंघल ने बताया कि मशीनों को सालाना मेंटेनेंस की जरूरत है। बिना मेंटेनेंस इनका संचालन खतरनाक हो सकता है। हमने विश्वविद्यालय प्रशासन को प्रस्ताव भेज रखा है।

Hindi News / Jaipur / उत्तर भारत के बड़े संस्थानों में इन मशीनों की कमी लेकिन RU में नहीं हो रही कद्र

ट्रेंडिंग वीडियो