जयपुर

Video: 290 साल का हुआ सवाई जयसिंह का बसाया ‘जयपुर‘, तेजी से घूम रहा विकास का पहिया

गगनचुंबी बन रहा गुलाबीनगर, सुविधाएं भी, सरकार की चाहत भी…

जयपुरNov 18, 2017 / 04:50 pm

dinesh

290 साल पहले बसा जयपुर आज परकोटे से निकलकर बाहर की तरफ फैल गया है। विकास का पहिया इतनी तेजी से घूम रहा है कि चारों दिशाओं में बसावट का दौर जारी है। सवाई जयसिंह ने जब जयपुर बसाया था तो शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनका जयपुर विकास के सौपान इतनी तेजी से पार करेगा। इन सबके बीच यह भी किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि जिन विरासत पर हम इतराते हैं, विकास के दौर में उन पर भी दाग लग जाएगा।
 

मेट्रो ट्रेन का लोग स्वागत करते हैं, लेकिन परकोटे की जिस एतिहासिक विरासत को तहस-नहस कर लाइनें डाली जा रही हैं, उससे आमजन उद्वेलित है। शहर का सबसे प्राचीन रोजगारेश्वर मंदिर भी इसी तरह के विकास की भेंट चढ़ गया। इसके गिराए जाने पर लोगों के आंसूं तक निकल पड़े। शहर का नक्शा 290 साल में बिलकुल पलट गया है। जहां बेलगाडिय़ां चलती थीं, वहां आज लो फ्लोर बसें चल रही हैं। लोग चौपालों में बैठकर शहर की चर्चा करते थे, अब लोगों को इसकी फुर्सत ही नहीं है। बदलाव आया है, लेकिन संस्कृति खोती जा रही है।

इसलिए है दुनिया में हमारी अलग पहचान…

गुलाबी नगर…
विश्व में नक्शे पर जयपुर गुलाबी नगर के रूप में जाना जाता है। देश-विदेश से पर्यटक गुलाबी नगर को देखने आते हैं। परकोटा का गुलाबी रंग पर्यटकों का खासा लुभा भी रहा है।
 

वास्तुशास्त्र…
प्रख्यात वास्तुशास्त्री व शिल्पी विद्याधर चक्रवर्ती ने जयपुर को नियोजित तरीके से बसाया था। उन्होंने नौ वर्ग मील के परकोटे में 7 दरवाजे व 9 चौकडिय़ां बनाई।

 

जिनको देखते ही हो जाते हैं रोमांचित पर्यटक
परकोटा…
नौ वर्ग मील के परकोटे में 7 दरवाजे व 9 चौकडिय़ां बनी हैं, खास बात यह है कि यहां के रास्ते एक दूसरे को काटते हैं। दुनियाभर से पर्यटक इसे निहारने आते हैं।

 
किले व महल…
आमेर महल, नाहरगढ़ व जयगढ़ किले से ही जयपुर की पहचान है। आमेर का शीश महल, नाहरगढ़ में राजा की विभिन्न रानियों के लिए बनाए गए एक जैसे आकार के महल अनोखे हैं।
 

हवामहल व जंतर-मंतर…
हवा महल जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई प्रताप सिंह की ओर से तैयार की गई नायाब इमारत है, जो दुनियाभर में शुमार है। वहीं जंतर-मंतर अपनी सटीक गणना के लिए विश्व प्रसिद्ध है। देश की प्रमुख वेधशालाओं में से एक है।
 

मूर्तियां पत्थर…
मूर्तियों व मूर्तियों का व्यवसाय देशभर में सबसे ज्यादा जयपुर में होता है। शिल्पकारों की नक्काशी भी दुनियाभर में पसंद की जाती है। यहां के मूर्तिकारों को पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
 

गलता मंदिर…
परकोटे में स्थित मंकी वैली इतनी प्रसिद्ध है कि इसे ध्यान में रख कई नेशनल टेलीविजन के लिए यहां डॉक्यूमेंट्रीज भी तैयार की जा चुकी है। इसी तरह गलता मंदिर तीर्थ धाम के रूप में देश भर में प्रसिद्ध है।
 

ब्लू पॉटरी व मीनाकारी…
ब्लू पॉटरी देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। हालांकि मुख्यत: यह कला ईरान से आई है। किशनपोल बाजार में आर्ट एंड क्राफ्ट संस्थान में देश-विदेश से लोग यह कला सीखने आते हैं।
 

एसएमएस…
देश के सबसे बड़े अस्पतालों शामिल है एसएमएस अस्पताल। इस अस्पताल को प्रतिदिन का ओपीडी 10-15 हजार है। जबकि करीब एक लाख लोगों की आवाजाही अस्पताल में रहती है।

 

सांगानेरी प्रिंट…
बगरू प्रिंट व बंधेज : छपाई की दुनिया में सांगानेरी प्रिंट की अपनी खास पहचान है। सांगानेर में छीपा जाति ने इस प्रिंट को ईजाद किया था। वहीं साडिय़ों में बंधेज की लोगों को लुभा रहा है।
 

पहले नालियां तक धुलती थीं…
सरकार तो अब मशीन से सडक़ धोने का प्रोजेक्ट लेकर आई है, जो भी पाइप लाइन में ही है। बीते जमाने में लोगों ने वे दिन देखे हैं जब सडक़ों की नियमित सफाई के साथ नालियों की भी धुलाई होती थी। घर-घर कचरा संग्रहण योजना भले ही लाई गई है, लेकिन अब तक लोगों को गंदगी के ढेरों से निजात नहीं मिल पाई है।
 

गगनचुंबी बन रहा गुलाबीनगर, सुविधाएं भी, सरकार की चाहत भी…
शहर अब उंचाई की तरफ बढ़ रहा है। खुद सरकार इसी दिशा में काम कर रही है कि शहर ?का विकास वर्टिकल (उंचाई की तरफ) हो। इसके लिए एकीकृृत बिल्डिंग बायलॉज में भी इसी तरह के प्रावधान किए गए हैं। कारण, न तो इतनी भूमि बची है कि लगातार कॉलोनियां सृजित की जा सके। जहां योजनाएं सृजित की भी गई हैं, वे आबादी क्षेत्र से 40 किलोमीटर दूर हैं, जहां तक आसानी से पहुंचाने ही किसी चुनौती से कम नहीं है। मूलभूत सुविधाएं पहुंचाना तक टेढी खीर साबित हो रहा है। इसी कारण वर्टिकल विकास को तरजीह दी जा रही है। शहरी विकास मंत्रालय भी मान रहा है कि लोगों को तत्काल सुविधाएं वर्टिकल डवलपमेंट में ही मिल सकेगी।

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