भारत का फार्मा उद्योग दुनिया में 13वें स्थान पर है। उत्पादन और बिक्री के मामले में तीसरे और ड्रग ट्रायल के क्षेत्र में टॉप 5 देशों में शामिल है। जयपुर शहर में इस समय 20 और राजस्थान में 62 एथिक्स कमेटियां हैं। कमेटी में न्यूनतम सात और अधिकतम 15 सदस्य रखे जा सकते हैं
कमेटी के सदस्य चेयरपर्सन
मानद सचिव
एमबीबीएस डॉक्टर
क्लीनिशियन
सामाजिक कार्यकर्ता
अधिवक्ता
आम आदमी कमेटी के सदस्य आम आदमी के दायित्व – ट्रायल के बारे में सभी जानकारियां रखना
– रोगी चयन में पक्षपात को कम करने में मदद करना
– ट्रायल के लाभ और जोखिम की तुलना करना
– जिस मरीज पर ट्रायल किया जा रहा है, उसके सहमति पत्र और वीडियो रिकॉर्डिंग पर नजर रखना कि उसे सब कुछ स्पष्ट तरीके से बताया गया है या नहीं ?
– मानव अधिकारों की रक्षा करना
– मरीज को नुकसान होने पर उसकी क्षतिपूर्ति राशि की गणना करना, उसे मुआवजा सही समय पर और पूरा मिला या नहीं
कमेटी के सदस्य सामाजिक कार्यकर्ता के दायित्व – ट्रायल का समाज पर प्रभाव
– दवाओं के उपयोग और उनके निष्कर्ष का नैतिक मूल्यांकन
– मरीजों के सामाजिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना
एक्सपर्ट कमेंट ट्रायल पर नजर रखने का मुख्य काम एथिक्स कमेटी के पास होता है। भारत में क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआरआई) के माध्यम से ट्रायल पंजीकृत किए जाते हैं। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) इसकी नियामक संस्था है। इस समय ट्रायल पर नजर रखने के लिए कई मजबूत प्रावधान हैं। एथिक्स कमेटी मजबूत हो तो कोई भी ट्रायल अनैतिक नहीं हो सकता। मरीज को समय पर मुआवजा मिले, उसके मानव अधिकारों सहित संपूर्ण जानकारियां हो तो भारत नई दवा की खोज के मामले में दुनिया का सबसे अग्रणी देश बन सकता है। मेरी लिखित पुस्तक क्लिनिकल ट्रायल प्रोजेक्ट मैनेजमेंट है। यह एल्सीवीयर, संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से प्रकाशित हुई है। पुस्तक में ट्रायल के कई सुधारो के बारे में बताया गया है
डॉ.अशोक कुमार पीपलीवाल, क्लीनिक ट्रायल एथिक्स कमेटी सदस्य