12 पुलिसकर्मियों की रिहाई के मामले में राज्य सरकार की ओर से विशेष लोक अभियोजक अधिवक्ता अनुराग शर्मा ने कहा कि 12 पुलिसकर्मियों में से 11 प्रशिक्षु उप निरीक्षक हैं और उनमें से 10 को 2 अप्रेल को राजस्थान पुलिस अकादमी बुलाया था। इस दौरान उनसे पूछताछ की गई, लेकिन वे स्वतंत्रतापूर्वक रहे। पूछताछ के लिए 15 पुलिसकर्मी बुलाए थे, जिनमें से 10 के खिलाफ प्रमाण मिले और उनको गिरफ्तार कर लिया गया। शेष पांच को आरपीए वापस भेज दिया गया। इसके अलावा दो अन्य को भी पूछताछ के लिए बुलाया। 24 घंटे के भीतर चार अप्रेल को सभी को कोर्ट में पेश कर दिया गया, ऐसे में हिरासत अवैध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर कहा कि हिरासत व गिरफ्तारी दोनों अलग-अलग हैं। उन्होंने अवैध हिरासत को लेकर डीजीपी के पास लंबित जांच 15 दिन में पूरी करने का भरोसा दिलाया। उधर, गिरफ्तार पुलिसकर्मियों की ओर से अधिवक्ता एस एस होरा ने कहा कि ये पुलिसकर्मी मर्जी से नहीं आए, इन्हें आरपीए बुलाया गया था। ऐसे में वे आरपीए में आने के समय ही हिरासत में आ गए और उनके लिए 24 घंटे का समय आरपीए आने के समय से ही गिना जाए। जब पहला रिमांड सही नहीं था, तो आगे का रिमांड स्वत: ही अवैध हो जाता है। करीब दो घंटे तक बहस सुनने के बाद न्यायाधीश बंसल ने करीब डेढ़ घंटे तक आदेश लिखवाया।
हाईकोर्ट ने यह दिया आदेश
-12 पुलिसकर्मियों की रिहाई का सीएमएम कोर्ट का फैसला और एसओजी के खिलाफ की गई टिप्पणी रद्द-डीजीपी पहले से लंबित 14 लोगों और इन 12 लोगों की हिरासत की जांच कर 15 दिन में रिपोर्ट दें जांच करें
…इधर, सरकार से मांगा जवाब
हाईकोर्ट में एसआई भर्ती पेपरलीक मामले से संबंधित एक और प्रकरण पहुंचा है, जिसमें गलत तरीके से चयनित अभ्यर्थियों के स्थान पर निचली मैरिट वालों का चयन कराने की मांग की गई है। न्यायाधीश गणेश राम मीना ने इससे संबंधित राजेन्द्र सैन की याचिका पर गृह सचिव के जरिए राज्य सरकार, पुलिस महानिदेशक व राजस्थान लोक सेवा आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।