अनंग त्रयोदशी पर कामदेव तथा रति की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। स्वयं शिवजी ने इस दिन व्रत रखकर पूजन करनेवालों के प्रेम संबंध मधुर बने रहने का वरदान दिया था. अनंग त्रयोदशी व्रत कथा में इस संबंध में विस्तार से बताया गया है. कथा के अनुसार एक बार तारकासुर नामक असुर ने स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया। उसके अत्याचार से तीनों लोक में त्राहि-त्राहि मच गई। देवताओं को मालूम चला कि तारकासुर का अंत शिवजी के हाथों से ही हो सकता है पर उस समय वे ध्यान मग्न थे।
ध्यानरत शिवजी को जगाने का किसी में भी साहस नहीं था। तब देवताओं ने इस कार्य में कामदेव से मदद मांगी। कामदेव ने अपनी पत्नी रति के साथ भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया। इससे क्रोधित शिवने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव का भस्म कर दिया। अपने पति कामदेव का यह हश्र देखकर रति रोते हुए शिवजी से गुहार लगाने लगीं। इस पर भगवान शिव पिघले और कामदेव को पुनः जीवित करने का वरदान दिया।
उन्होंने रति से कहा वे अभी अनंग हैं, अर्थात बिना शरीर के हैं। द्वापर युग में वे दोबारा सशरीर होकर भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे । शिवजी ने रति से यह भी कहा कि सृष्टि चक्र चलाने के लिए कामदेव और तुम मनुष्य के हृदय में प्रवेश करके काम और प्रेम बढ़ाने का काम करते रहोग। उन्होंने यह आशीर्वाद भी दिया कि अनंग त्रयोदशी के दिन शिव-पार्वती के साथ कामदेव और रति की पूजा करनेवालों के प्रेम संबंध सफल होंगे।