तीखे सवालों से बच्चों ने मौजूदा तंत्र और सत्ताधीश पक्ष एवं विपक्ष को बखूबी आइना दिखाया। किशोर उम्र के विद्यार्थियों ने मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और विधायक की भूमिका में समूचे तंत्र में बदलाव के तर्क रखे।
प्रश्नकाल में विद्याथियों ने विधायकों की तरह ही सवाल पूछे। उसी तर्ज पर मंत्री की भूमिका निभाने वाले छात्रों ने जवाब दिए। इसके बाद कोचिंग पर नियामक संस्था बनाने को लेकर प्रस्ताव पर बहस हुई। यह देखकर दु:ख हुआ कि बच्चों की बातों में दर्द और निराशा भी है।
एक दिन पहले अर्थात शुक्रवार को जो सदन विधायकों के अपशब्दों का गवाह बना, वहीं आज युवा संसद सजी। युवा संसद में बच्चों के तर्क, सुझाव और तेवर में देश के सुखद भविष्य की तस्वीर नजर आई।
राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की पहल पर इसका आयोजन हुआ। इस दौरान देवनानी, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और विधायक संदीप शर्मा मौजूद रहे।
ये दिए सुझाव
-जेईई, मेडिकल, आईआईटी में सीटें बढ़नी चाहिए। -शिक्षा पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है। -कोचिंग का टाइम टेबल सरकार बनाए। -कोचिंग सेंटरों का अफसर नियमित निरीक्षण करें। -इनके लिए सख्त मॉनिटरिंग मैकेनिज्म बनाने की है। -चाइल्ड हेल्थ, मेंटल हेल्थ पर ध्यान दिया जाए।
कोचिंग संस्थानों की बना रहे गाइडलाइन
कोचिंग का कारोबार हर जगह छा गया है। विद्या का मूल उद्देश्य कहीं खो गया है। बच्चों का नाम स्कूल में लिखा होता है और वे पढ़ते कोचिंग संस्थान में। हम गाइडलाइन बना रहे हैं। जो अवहेलना करेगा, उस पर जुर्माना लगेगा। सुधार के साथ हम कोचिंग संस्थानों को वापस लाएंगे। गुणवत्ता की शिक्षा और प्रतिस्पर्धा की तैयारी के लिए सही दिशा दिखाएंगे।-
सिद्धार्थ एस, मुख्यमंत्री की भूमिका
नाकामी से पनपे कोचिंग सेंटर
शिक्षा व्यवस्था की नाकामी से कोचिंग संस्थान पनप गए। जेईई परीक्षा के लिए कहा जाता है कि एनसीईआरटी सिलेबस पर आधारित है लेकिन ऐसा है नहीं। यह परीक्षा स्कूली सिलेबस पर आधारित क्यों नहीं है? कोचिंग के साथ नकली स्कूल तक पनप गए। शिक्षा को व्यापार बना दिया। दु:ख की बात है कि युवा दबाव में आकर सुसाइड के लिए मजबूर हो रहे हैं। शिक्षा प्रणाली और सरकार की निष्क्रियता को सुधारने की जरूरत है।- सौम्या सिंह भदौरिया, विधायक की भूमिका
56% बच्चे डिप्रेशन के शिकार
कोचिंग सेंटरों में बच्चों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। लोग कहते हैं कि काश, हम बच्चे होते तो खेलकूद पाते। मगर आज 56 प्रतिशत बच्चे डिप्रेशन का शिकार हैं। यहां तक कि 60 प्रतिशत बच्चों के पास मेंटल हेल्थ सपोर्ट नाम की चीज नहीं है। क्या यह चिंता की बात नहीं है। दो बच्चे कोचिंग में समान फीस भरते हैं लेकिन एक को टॉप बैच और दूसरे को लोअर बैच मिलता है। कोचिंग वाले मोटी फीस वसूलकर स्कॉलरशिप का दावा करते हैं लेकिन इसमें भी खेल है। स्कॉलरशिप से ज्यादा तो फीस बढ़ा देते हैं।- तेजस वशिष्ठ, विधायक की भूमिका