सर्जरी से पहले फिटनेस प्रमाण पत्र के लिए भी कई मरीजों को रेफरेंस की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा एसएमएस के यूरोलॉजी, प्लास्टिक सर्जरी, न्यूरोसर्जरी, न्यूरोलॉजी, ईएनटी, कार्डियोलॉजी, गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी, कार्डियोथोरेसिक सर्जरी, मेडिसिन, ऑर्थोपेडिक, नेत्र, ऑन्कोलॉजी और नेफ्रोलॉजी विभाग से सर्वाधिक रेफरेंस दूसरे विभागों में भेजे जाते हैं। महिला और जनाना अस्पताल में सामान्य बीमारियों का रेफरेंस लेकर मरीजों और परिजनों को सवाईमानसिंह अस्पताल और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल जाना पड़ता है। यही हाल जेकेलोन, श्वास रोग संस्थान और मनोरोग सहित अन्य अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों का भी है। परिजन दूसरे विभाग में रेफरेंस जमा करवाकर आते हैं, लेकिन वहां से चिकित्सक के आने में ही कई बार दो-तीन दिन तक लगा दिए जाते हैं। किसी मरीज के एक से अधिक बीमारियां होने पर उन्हें देखने के लिए दूसरे विभाग से चिकित्सकों को बुलवाए जाने की प्रक्रिया को रेफरेंस कहा जाता है।
मरीज व उनके परिजन वार्ड से रेफरेंस के लिए फाइल लेकर संबंधित विभाग की ओपीडी या वार्ड जाते हैं। वहां चिकित्सक को रेफरेंस लिखवाकर आते हैं। उसके कुछ घंटे बाद या अगले दिन सीनियर रेजिडेंट या चिकित्सक मरीज को देखने आते हैं। वे जांच या रेफर, दवा आदि के लिए सलाह देते हैं। जांच रिपोर्ट दिखाने या दवा में बदलाव कराना हो तो उसके लिए दुबारा रेफरेंस कराना पड़ता है। इस पर परिजनों को ही चक्कर लगाने पड़ते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एसएमएस के सभी अस्पतालों के बीच कई किलोमीटर की दूरी हैं। इस दौरान मरीज और उनके परिजनों को रेफरेंस के लिए भटकना पड़ता है।
SMS के सर्जन ने 14 वर्ष में 37 लाख से बनाई 18 करोड़ की सम्पत्ति, जयपुर-झुंझनूं में पांच ठिकानों पर ACB की सर्च
– ओपीडी में मरीजों की लंबी कतारें रहती हैं।
– सीनियर डॉक्टरों को वार्डों में ढूंढ पाना मुश्किल होता है, वे ओपीडी समय पूरा होने के बाद परिजनों को आसानी से नहीं मिलते।
– इस प्रक्रिया में पांच से छह घंटे जूझना पड़ता है। यह समय मरीज व उसके परिजनों के लिए काफी कष्टदायक होता है।
रेफरेंस की व्यवस्था अस्पताल प्रशासन को ही करनी चाहिए। मरीज जहां भर्ती है, वहां से ऑन कॉल सीधे रेफरेंस लिया जा सकता है। इसके लिए अलग से विंग भी बनाई जा सकती है। मरीज व उनके परिजनों को चक्कर लगवाना गलत है।
एसएमएस में दोनों सिस्टम सवाईमानसिंह अस्पताल में रेफरेंस के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों ही सिस्टम हैं। लेकिन इनमें भी कई बार मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दूसरे अस्पतालों में अभी तक ऑनलाइन सिस्टम ही विकसित नहीं हो पाया है।