जयपुर। द्रव्यवती नदी (अमानीशाह नाला) की निगरानी अब सैटेलाइट के जरिए होगी। इसके लिए इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर का सहयोग लिया जाएगा। सरकार ने 40 किलोमीटर लम्बी द्रव्यवती नदी के हर हिस्से की मॉनिटरिंग के लिए जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) को जिम्मेदारी सौंपी है।बहाव क्षेत्र की जमीन पर बढ़ते कब्जों को रोकने में नाकाम सरकारी मशीनरी ने हाईकोर्ट की सख्ती के बाद यह कवायद शुरू की है। इस संबंध में नगरीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, जेडीए, नगर निगम के अधिकारियों के बीच मंथन हुआ। इसके बाद जेडीए प्रशासन ने इसकी जिम्मेदारी टाउन प्लानिंग शाखा को सौंपी है। इसके अलावा 5 टीमें गठित कर दी गई हैं, जो अपने-अपने परिधि क्षेत्र में गुजर रही द्रव्यवती नदी की निरंतर मॉनिटरिंग करेंगी। इसमें पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी तय की गई है। पहले फेल, कैसे निभाएंगे जिम्मेदारी?40 किलोमीटर लम्बी द्रव्यवती नदी में से 33.35 किलोमीटर क्षेत्र जेडीए और 6.55 किलोमीटर क्षेत्र नगर निगम परिधि क्षेत्र में है। जेडीए जोन 2,4, 5, 6, 7, 8 व 9 जोन से होकर गुजर रहा है। इन्हीं जोन के आधार पर 5 टीमों का गठन किया है। हर टीम में चार अफसर जोन उपायुक्त, तहसीलदार, प्रवर्तन अधिकारी व फील्ड सहायक होंगे। इसके अलावा नगर निगम भी अपने स्तर पर टीम गठित कर निगरानी करेगा। इन्हें हर 15 दिन में नगरीय विकास विभाग को मौका रिपोर्ट सौंपनी होगी। हालांकि, पहले भी इसी तरह की टीमें गठित की गई थी, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। यूं होगा कामद्रव्यवती नदी का उद्गम विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र के पीछे ग्राम जैसल्या से माना जाता है, जो 40 किलोमीटर दूरी के बाद गोनेर के आगे तक पहुंचती है।जेडीए इसकी बहाव क्षेत्र की तय चौड़ाई और लम्बाई का खाका नेशनल रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट का सौंपेगा। यहां सैटेलाइट के जरिए द्रव्यवती नदी से संबंधित हिस्से की निरंतर तस्वीर लेंगे। इसके लिए नदी को अलग-अलग हिस्सों में बांटा जाएगा।इस प्रक्रिया में नदी के एक प्वाइंट की तस्वीर लेने के बाद उस हिस्से की दूसरी तस्वीर करीब एक माह बाद ली जा सकेगी। मसलन, सैटेलाट के जरिए रिद्धि-सिद्धि पुलिया के पास द्रव्यवती नदी हिस्से की स्थिति 1 मार्च को देखी गई तो इसके करीब एक माह बाद यानि 1 अप्रेल को उसी हिस्से की तस्वीर ली जाएगी। बताया जा रहा है कि सैटेलाइट उपकरण अंतरिक्ष में घूमता रहता है, इसलिए उसी जगह आने में करीब एक माह का समय लगता है। एक माह के अंतराल में ली गई तस्वीरों से उस जगह पर अतिक्रमियों का पता लगने का दावा किया जा रहा है।