तथ्यों के अनुसार 22 मई 96 को रोडवेज की बस आगरा से रवाना होकर बीकानेर जा रही थी, इसमें 49—50 सवारी थी। महुआ से करीब 3—4 किलोमीटर आगे समलेटी में बस में विस्फोट हुआ, जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई। बस के परिचालक अशोक शर्मा ने घटना को लेकर मामला दर्ज कराया, जिसमें कहा कि बस के दो यात्री महुआ उतर गए थे और उन्होंने अपना टिकट भी लौटा दिया था। वे 27—28 साल के थे। इस मामले में 29 सितम्बर 2014 को बांदीकुई अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने अब्दुल हमीद को फांसी की सजा सुनाई। इसके खिलाफ हमीद ने अपील की। रईस बेग, जावेद खान जूनियर, लतीफ अहमद बाजा, मोहम्मद अली भट्ट, मिर्जा निसार हुसैन व अब्दुल गोनी ने भी अपनी सजा को चुनौती दी। फारूख अहमद खान का मामला भी हाईकोर्ट के सामने आया।
इस मामले में अभियुक्त रहे रियाज अहमद शेख की मौत हो चुकी है और कंवलजीत बरी हो चुका है। अधिवक्ता एस एस हसन, अधिवक्ता आर एम शर्मा व जे आर बिजारनिया व अन्य ने अभियुक्त पक्ष की पैरवी की, वहीं सरकार की ओर से रेखा मदनानी ने पैरवी। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि अब्दुल हमीद की इस वारदात में प्रमुख भूमिका रही और उसके कारण 14 जनों की मौत हो गई। सवाई मानसिंह स्टेडियम में 26 जनवरी 96 को बम रखे जाने के मामले में भी उसकी भूमिका रही और मई 96 में बस में बम विस्फोट कर लोगों में भय पैदा किया। समाज के खिलाफ गंभीर अपराध किया। आतंकवाद फैलाने के लिए लोगों की जान ली, इसलिए हमीद को फांसी दिया जाना सही है।
जावेद खान दिल्ली स्थित लाजपत नगर के बम विस्फोट मामले में दोषी है और अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। कोर्ट ने जावेद खान, लतीफ अहमद, मोहम्मद अली भट्ट, मिर्जा निसार हुसैन, अब्दुल गोनी को बरी कर दिया। वहीं रईस बेग के मामले में कहा कि उसे सवाई मानसिंह स्टेडियम बमकांड में सजा हो चुकी है और इस मामले में भूमिका नहीं है, इस कारण संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया। फारूख अहमद खान के मामले में कहा कि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
वहीं विस्फोटक सप्लाई करने के आरोपी पप्पू उर्फ सलीम को 7 मार्च 17 को दी गई आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। रिहाई का आदेश कोर्ट ने कहा कि जावेद खान, लतीफ अहमद, मोहम्मद अली भट्ट, मिर्जा निसार हुसैन, अब्दुल गोनी व रईस बेग को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जावेद खान, मोहम्मद अली भट्ट, मिर्जा निसार हुसैन, अब्दुल गोनी व रईस बेग के खिलाफ कोई अन्य मामला नहीं है तो 25 हजार—25 हजार रुपए के निजी मुचलकों पर उनको छोड़ दिया जाए। मुचलके 6 माह तक प्रभावी रहेंगे।
अधिवक्ताओं को दी थी सुरक्षा
भाजपा सरकार के समय तत्कालीन महाधिवक्ता एन एम लोढ़ा को धमकी मिली थी। इसके बाद दिल्ली से आए वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंद्राजोग, तत्कालीन महाधिवक्ता लोढ़ा, तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा व तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता अनुराग शर्मा को सुरक्षा प्रदान की गई थी। इसके अलावा अधिवक्ता नंद्राजोग को करीब डेढ़ करोड़ रुपए फीस का भुगतान किया गया। इस मामले की पिछले साल से नियमित सुनवाई चल रही थी, लेकिन न्यायाधीश सेवानिवृत होने या तबादले के कारण बार—बार बेंच बदलती रही।