डोटासरा ने इस तरह साधा निशाना
पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय भाजपा ने स्वार्थ की सियासत में शहीद के परिवारों को भी नहीं बख्शा। वीरांगनाओं को बहलाकर, फुसलाकर उन्हें सियासी मोहरा बनाया, जिसकी कीमत आज वो परिवार चुका रहे हैं। भाजपा नेताओं ने नियम विरुद्ध वीरांगना का हक़ व अनुकंपा नौकरी देवर को देने की अनुचित मांग की। तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए वीरंगनाओं को उकसाया और सड़क पर बैठाकर प्रदर्शन व तमाशा किया। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस सरकार कभी भी शहीद की पत्नी का हक़, आर्थिक अनुदान एवं नौकरी देवर को देने के पक्ष में नहीं रही, लेकिन भाजपा ने वीरांगनाओं को सियासी ढाल बनाकर ओछी राजनीति की। आज पुलवामा के शहीद रोहिताश लांबा जी की वीरांगना अपने देवर पर मारपीट और धोखाधड़ी का आरोप लगा रही हैं। वीरांगना किस तकलीफ से गुजर रही हैं, उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
अंत में डोटासरा ने कहा कि शहीद रोहिताश लांबा जी की वीरांगना के साथ जो धोखाधड़ी और अत्याचार हुआ, क्या भाजपा नेता उसकी जिम्मेदारी लेंगे?
विरांगना ने लगाए ये आरोप
बता दें, जयपुर के हरमाड़ा क्षेत्र में वीरांगना के साथ धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। पुलवामा हमले में शहीद हुए रोहिताश लांबा की वीरांगना ने बुधवार को हरमाड़ा पुलिस थाने में धोखाधड़ी का मामला दर्ज करवाया है। पुलिस ने बताया कि वीरांगना मंजू देवी ने रिपोर्ट में बताया है कि पुलवामा हमले में मेरे पति शहीद हो गए थे। आरोप है कि घटना के बाद सीआरपीएफ व सरकार के द्वारा 5 करोड़ रुपए की सहायता राशि प्रदान की थी। मेरे देवर जितेंद्र लाम्बा, सास पीसी देवी और ससुर बाबूलाल लंबा को मैंने प्राप्त की गई धनराशि इनकी देखरेख में सौंप दी। मेरे देवर खाली चेकों पर हस्ताक्षर करवाकर अपनी मर्जी से राशि भरकर निकाल ली।
पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद
गौरतलब है कि शहीद के परिवार में पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है। बताया जा रहा है कि इस विवाद को लेकर शहीद की वीरांगना और उसके ससुराल वाले आमने सामने है। पूर्ववर्ती सरकार के समय वीरांगना ने अपने देवर को सरकारी नौकरी दिलाने के लिए आंदोलन किया था। उन दिनों भाजपा के नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने भी मंजू को साथ लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निवास की ओर कूच किया था। तब गहलोत सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि नियमों के मुताबिक शहीद की पत्नी या उनके बच्चों को सरकारी नौकरी दी जा सकती है। परिवार के अन्य किसी सदस्य को नौकरी देने का प्रावधान नहीं है।