भोपाल स्थित गोकाष्ठ संवर्धन एवं पर्यावरण संरक्षण समिति के अध्यक्ष अरुण चौधरी ने बताया कि जंगल, गोशालाओं और पर्यावरण के संरक्षण के उद्देश्य से कुछ वर्ष पहले भदभदा स्थित विश्राम घाट में बैठक हुई। इस दौरान सामने आया कि देश के कुछ हिस्सों में मोक्षधाम में शव के दाह संस्कार में लकड़ी के विकल्प के रूप में गाय के गोबर की लकड़ी (गोकाष्ठ) का इस्तेमाल किया जा रहा है। बैठक में मौजूद भोपाल के सुभाष नगर, भदभदा और छोला विश्रामघाट के प्रबंधन से जुड़े प्रमोद चुग, अजय दुबे व साइंटिस्ट योगेंद्र सक्सेना सहित अन्य पदाधिकारियों ने तय किया कि उनके यहां दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों को अंतिम संस्कार में गोकाष्ठ का इस्तेमाल करने के लिए जागरूक किया जाए।
समन्वयक मम्तेश शर्मा ने बताया कि भोपाल तथा आस-पास के अन्य शहरों के विश्रामघाटों में भी जागरूकता अभियान चलाया गया। पत्रक वितरित कर लोगों को गो काष्ठ का पर्यावरणीय, वैज्ञानिक और सामाजिक महत्त्व बताया। उन्होंने बताया कि लकड़ी की तुलना में गोकाष्ठ की ज्वलनशीलता ज्यादा होती है और दाह संस्कार में लकड़ी की तुलना में कम मात्रा में इस्तेमाल होता है। गोकाष्ठ का महत्त्व जानकर कई लोगों ने संकल्प पत्र भी भरे।
इसके लिए ग्वालियर से मशीन भोपाल मंगाई गई। इसे हलाली डेम स्थित रामकली गोशाला को डोनेट कर वहां के प्रमुख प्रहलाद दास अग्रवाल से गाय के गोबर से गोकाष्ठ का उत्पादन करने को कहा।
शर्मा ने बताया कि भोपाल में संजीवनी गोशाला, शारदा विहार व किशोर गोशाला सहित छह से आठ स्थानों पर बड़े स्तर पर गोकाष्ठ बनाया जा रहा है। इसे वहां के विभिन्न विश्राम घाटों में साढ़े सात रुपए प्रति किलो के हिसाब से भेजा जा रहा है। विश्राम घाट प्रबंधन की ओर से तुरंत भुगतान किए जाने से गोशालाओं की वित्तीय स्थिति में भी सुधार हुआ है। बिना किसी शासकीय सहयोग के भोपाल शहर की 18 गोशालाओं में गोकाष्ठ का निर्माण कर उसे शहर के प्रमुख विश्राम घाटों में पहुंचाया जा रहा है।
SMS अस्पताल में बेड पर दवा पहुंचाने की योजना हवा-हवाई, परिजन लगा रहे दवा काउंटरों के चक्कर
लगभग 6 वर्षों में शहर के प्रमुख विश्राम घाट भदभदा, सुभाष नगर, छोला, कोलार और बैरागढ़ में लगभग एक लाख शवों का दाह संस्कार गो काष्ठ से किया जा चुका है। भोपाल शहर के 5 प्रमुख विश्राम घाटों में एक वर्ष में लगभग 15 हजार दाह संस्कार गोकाष्ठ से हो रहे हैं। गोकाष्ठ की 3 फीसदी, जबकि लकड़ी की करीब 34 फीसदी राख वायुमंडल में जाती है और ओजोन परत को डैमेज करती है। उन्होंने बताया कि समिति की टीम मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों के साथ ही दिल्ली, बनारस व मुंबई सहित देश के अन्य शहरों व महानगरों में गोकाष्ठ को लेकर जनमानस को जागरूक कर रही है।
भोपाल स्थित दो गोशालाओं में करीब 1700 गायें हैं। इन स्थानों पर दो मशीनों की मदद से गोकाष्ठ बनाया जा रहा है। इसे भोपाल के तीन बड़े विश्रामघाट में पहुंचाया जाता है। यहां करीब 90 फीसदी दाह संस्कार गोकाष्ठ से हो रहे हैं।
रजनिका राठौड़, अध्यक्ष, संजीवनी गोशाला