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प्रार्थना पत्र में गायत्री देवी की वसीयत पर फैसला आने तक इसमें उल्लेखित सम्पत्ति के बारे में देवराज और लालित्या को कोई भी निर्णय लेने से रोकने का आग्रह किया गया था। जयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य पृथ्वीराज, विजीत सिंह व उर्वशी देवी ने गायत्री देवी की वसीयत को अवैध घोषित करवाने के लिए दावा पेश किया था और उसी के साथ यह प्रार्थना पत्र पेश किया था। गायत्री देवी ने वर्ष 2009 में वसीयत के माध्यम से अपनी तमाम चल-अचल सम्पत्ति व अधिकार दिवंगत जगत सिंह के पुत्र देवराज व पुत्री लालित्या को सौंप दिए।
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पृथ्वीराज सहित तीनों याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि जगत सिंह गायत्री देवी का बेटाा नहीं था, उसे बहादुर सिंह को गोद दे दिया गया था। दत्तक सदैव दत्तक रहता है, वापस नहीं आ सकता। इस पर देवराज-लालित्या की ओर से अधिवक्ता रजत रंजन ने कहा कि जगत सिंह को सवाई मानसिंह व गायत्री देवी ने बेटा माना और अपनी पुस्तक में इसका जिक्र भी किया है।
न्यायाधीश अरविंद कुमार जांगिड़ ने सुप्रीम कोर्ट के गायत्री देवी के शेयर देवराज-लालित्या को ट्रांसफर करने के आदेश का हवाला देकर कहा कि याचिकाकर्ता अस्थाई निषेधाज्ञा के प्रार्थना पत्र के पक्ष में प्रभावी तथ्य पेश नहीं कर पाए, इस कारण प्रार्थना पत्र खारिज किया जा रहा है।