क्या है नियम…
कानूनन कोई भी रिकवरी एजेंट ग्राहक के घर में नहीं घुस सकता ना ही उसे धमका सकता है। बैंक या एनबीएफसी पत्र, ईमेल या फोन से संपर्क नहीं हो पा रहा है, तो उस ग्राहक को लोन की किस्त जमा कराने के लिए एजेंट के माध्यम से केवल रिमाइंडर भेज सकती हैं। रिकवरी के लिए पहले बैंक की ओर से नोटिस जारी किया जाता है, फिर रिकवरी ट्रिब्यूनल, कोर्ट या कलेक्टर से अनुमति लेकर पजेशन लिया जाता है, फिर ऑक्शन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस बीच भी ग्राहक यदि ब्याज और पेनल्टी के साथ मूल रकम चुकाने को तैयार हो जाता है तो प्रक्रिया को रोका भी जा सकता है।
बैंक कैसे गरीबों को अपने जाल में फंसाते हैं: सोगानी
बैंकिग हेल्पलाइन फाउंडेशन के संस्थापक राकेश सोगानी का कहना है कि कई बैंकों के क्रेडिट कार्ड और पर्सनल लोन क्षेत्र में काम करते हुए एहसास हुआ कि बैंक कैसे गरीबों को अपने जाल में फंसाते हैं। इसके बाद राजस्थान आरटीआइ एक्टिविस्ट फोरम का गठन किया और बैंकिंग और ग्राहकों के लिए हेल्पलाइन फाउंडेशन की शुरुआत की। यह भी पढ़ें
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एजेंट्स का इस्तेमाल गैरकानूनी: मिश्रा
राजस्थान में भी करीब 125 रिकवरी एजेंट और उनके साथ 1500 रिकवरी कर्मचारी काम कर रहे हैं। बैंकिंग मामलों के विशेषज्ञ और ऑल इंडिया बैंक ऑफ बड़ौदा ऑफिसर्स यूनियन के महासचिव लोकेश मिश्रा का कहना है कि खासतौर से प्राइवेट बैंक, एनबीएफसी, प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियां पहले टारगेट पूरे करने के लिए ग्राहकों को चुकाने की क्षमता का पूरा आंकलन किए बिना क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन और गोल्ड लोन थमा देते हैं। इसके बाद रिकवरी के लिए एजेंट्स का इस्तेमाल करते हैं। जबकि रिकवरी के लिए एजेंट्स का इस्तेमाल गैरकानूनी है।एक केस ऐसा भी..
विद्याधर नगर में श्मशान के सामने अंतिम संस्कार की सामग्री बेचने वाले को रिकवरी एजेंट्स ने इतना परेशान किया कि वह 8 साल से घर बार छोड़कर लापता है। अब उसकी पत्नी को भी रिकवरी एजेंट्स परेशान कर रहे हैं। ऐसे कई केस हैं, जिसमें रिकवरी एजेंट्स की प्रताडना से परेशान होकर आम ग्राहकों को आत्महत्या तक करनी पड़ी है। इसमें सबसे बड़ी बात है कि रिकवरी एजेंट्स के पीछे भी पुलिस के आला अधिकारियों हाथ होता है या फिर ये लोग ऊंचे राजनीतिक रसूख वाले होते हैं। इसके गरीब लोग जो पहले से कर्जदार होते हैं, इनके खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं।