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जयपुर

पंक्चर बनाने वाले का 14 साल जतन, 950 बार हुआ फेल फिर हुआ ऐसा चमत्कार की फटी रह गई सब की आँखें

Inspirational Story: जिद, जुनून और जज्बे दिमाग पर ऐसा हावी हुआ कि उसे लोग पागल करार देने लगे, लेकिन धुन के पक्के त्रिलोकी ने जमाने की बातें नहीं सुनने के लिए अपने कान ही बंद कर लिए। भगवान राम सरीखा वनवास भोगकर उसने 14 साल तपस्या की।

जयपुरMay 07, 2024 / 11:58 am

Akshita Deora

Real Life Motivational Story: जिद, जुनून और जज्बे दिमाग पर ऐसा हावी हुआ कि उसे लोग पागल करार देने लगे, लेकिन धुन के पक्के त्रिलोकी ने जमाने की बातें नहीं सुनने के लिए अपने कान ही बंद कर लिए। भगवान राम सरीखा वनवास भोगकर उसने 14 साल तपस्या की। एक-दो या सैकड़ों बार नहीं बल्कि 950 बार उसकी तपस्या भंग हुई, लेकिन उस पर धुन सवार थी कि वह हवा से इंजन चलाएगा। आखिरकार लंबी साधना के बाद त्रिलोकी ने यह चमत्कार कर दिखाया। अब त्रिलोकी की ओर से बनाया गया इंजन हवा से चल रहा है। बातें बनाने वाले लोग आज उसकी बातें सुनने को लालायित हैं।
नगला कौरई लोधा तहसील किरावली जिला आगरा का रहने वाला त्रिलोकी ट्रेक्टर एवं मोटरसाइकिल में पंक्चर लगाने का काम करता है। झोंपड़ी में दुकान चलाने वाले त्रिलोकी को यह भान तक नहीं था कि वह एक दिन आविष्कार का जनक बन जाएगा। एक दिन त्रिलोकी पानी खींचने के इंजन से अपने कम्प्रेशर में हवा भर रहा था। इस दौरा अचानक ही कम्प्रेशर का बाल टूट गया। बाल टूटने से हवा इंजन में भरने लगी और इंजन उल्टा घूमने लग गया। बस यही वह क्षण था जब इसे देखकर त्रिलोकी का दिमाग चकरा गया। इसी समय उसे हवा की ताकत का एहसास हुआ। इस पर उसके मन में ख्याल आया कि क्यूं न हवा से ही इंजन चलाने का प्रयोग किया जाए।
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हवा से इंजन चलाने की उस पर धुन इस कदर सवार हुई कि वह घर से भी बेगाना हो गया और दिन-रात दुकान पर रहकर इसी ख्याल में डूबा रहता, जब वह लोगों को यह बात बताना तो लोग उसी बातों पर हंसते और उसे पागल तक करार दे देते, लेकिन त्रिलोकी ने नकारात्मक भाव को कभी महत्व नहीं दिया और अपनी धुन में लगा रहा। कबाड़े का सामान खरीदकर वह इंजन बनाने में जुटा रहा। हर दिन वह नए प्रयोग करता, लेकिन कभी सफलता की उम्मीद बंधती तो कभी हिम्मत जवाब दे जाती, लेकिन वह रुका नहीं। त्रिलोकी अपने प्रयासों में करीब 950 बार विफल रहा, लेकिन 14 साल से हवा से इंजन चलाने की जिद उसे और दूसरा काम करने ही नहीं देती।
त्रिलोकी हवा से इंजन चलाने की जिद में घर को भी भुला बैठा। वह दिन-रात दुकान पर रहता और नए प्रयोग करता। यह धुन का ही नतीजा था कि उसकी अपना खेत एवं एक प्लॉट भी बेच दिया, जिसकी कीमत करीब 50 लाख रुपए थी। त्रिलोकी के घर नहीं जाने के कारण उसका भाई उसे दुकान पर ही खाना दे जाता था और त्रिलोकी अपनी धुन में रमा रहता। त्रिलोकी का दावा है कि अब सिंचाई के काम आने वाला इंजन हवा से चलने लगा है।
अब वह बाइक और ट्रेक्टर को भी हवा से चलाने की तमन्ना रखता है। त्रिलोकी का कहना है कि यदि इस आविष्कार को सरकार तरजीह दे तो वह यह चमत्कार कर सकता है। त्रिलोकी बताते हैं कि उन्होंने मंथन के दौरान इंसान के फेंफड़ों से दवा खींचने और छोडऩे की युक्ति जानी। त्रिलोकी बताते हैं इस इंजन के सहारे बाइक, ट्रक, ट्रेक्टर के साथ आटा चक्की, बोरेवेल एवं बिजली भी चलाई जा सकेगी। इसके सहारे आगे काम बढ़ाया। त्रिलोकी के इस आविष्कार में रामप्रकाश पंडित, अर्जुन सिंह, रामकुमार, संतोष चाहर, रामधनी एवं चन्द्रप्रकाश आदि सहयोगी रहे।

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