राजस्थान में सरकार इस मेहंदी को जीआई टैग दिलवाने के लिए कोशिश कर रही है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शासन सचिव मुग्धा सिन्हा का यह कहना है कि जीआइ टैग के लिए जल्द ही चेन्नई के जीआई सेन्टर की टीम को बुलाया जाएगा। आपको बता दें कि राजस्थान में सरकार राज्य के विशेष उत्पादों को जीआई में पजीकृत करवाने की तैयारी कर रही है। सोजत की मेहंदी को जल्द ही भौगोलिक संकेतक यानि जीआई मिलेगा। महिला उद्यमियों को पेटेंट एजेंट के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। राज्य की भौगोलिक स्थिति के आधार पर बनाए जा रहे विशेष उत्पादों की पहचान कर उन्हें भौगोलिक संकेतक में पंजीकृत कराने के लिए एक विशेष तंत्र विकसित किया जाएगा।
मिलावटी मेहंदी पर लगेगा अंकुश
वहीं, सोजत की मेहंदी को जीआई टैग मिलने की इन तैयारियों के बीच मेहंदी एसोसिएशन सोजत के सचिव विकास टांक का कहना है कि जीआई टैग मिलने के लिए मेहंदी व्यापार संघ समिति ने दो साल पहले आवेदन किया था। यह टैग मिलने पर सरकारी और संस्था के स्तर पर सोजत के मेहंदी की क्वालिटी कंट्रोल होगी। मिलावटी मेहंदी की बिक्री पर पूरी तरह अंकुश लग जाएगा। सोजत के नाम से बिकने वाले नकली मेहंदी का बाजार खत्म हो जाएगा। इतना ही नहीं, काश्तकारों को माल का बेहतर दाम मिलेगा। मेहंदी की मांग अन्य अपने देश के साथ विदेशों में भी बढ़ेगी। आपको बता दें कि जीआई टैग किसी विशिष्ट उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। यह किसा भी पंजीकृत वस्तु या उत्पाद के अनधिकृत उपयोग को रोकता है।
यह होता है जीआई टैग
आपकाे बता दें कि भारत में संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था। इस आधार पर किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली किसी खास वस्तु का कानूनी अधिकार संबंधित राज्य को दे दिया जाता है। जैसे उदाहरण के तौर पर बात करें तो मैसूर सिल्क, बनारसी साड़ी, कोल्हापुरी चप्पल की तरह अन्य। जिनकी विशेष पहचान है। इसी तरह से अब राजस्थान के पाली जिले के सोजत की मेहंदी को जीआई टैग मिलने से उसे कानूनी संरक्षण मिल सकेगा। हालांकि किसी भी वस्तु को GI टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता, क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है। इस बात की जांच की जाती है कि किसी खास वस्तु की सबसे अधिक और आॅरिजनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है ना।