अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् की ओर सोमवार को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय सभागार में इस मामले पर मंथन किया गया। इस दौरान जयपुर के वरिष्ठतम विद्वान प्रो.रामपाल शास्त्री के सभापतित्व में विद्वान, प्रोफेसर, ज्योतिषाचार्यों ने विचार रखे।
विभिन्न धर्मशास्त्रों में वर्णित संदर्भों के आधार पर व्याख्या की, जिसके आधार पर निर्णय लिया गया कि सूर्य सिद्धांत के अनुसार पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। धर्मसभा संयोजक प्रो. मोहनलाल शर्मा ने बताया कि 31 अक्टूबर को ही अमावस्या का प्रदोष काल प्रारंभ हो रहा है, जो संपूर्ण दिन एवं संपूर्ण रात्रि रहकर एक नवंबर को केवल अल्पकाल के लिए रहेगा। शास्त्रानुसार प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन किया जाना सर्वश्रेष्ठ है।
निर्णायक ग्रंथ माना जाता है धर्मसिंधु
दूसरी ओर शहर के प्रमुख बंशीधर पंचांग के निर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा ने बताया कि व्रत, पर्वों का निर्णायक ग्रंथ धर्मसिंधु माना जाता है। इसमें साफ उल्लेख है कि कार्तिक मास की अमावस्या को प्रात:काल अध्ययन स्नान, प्रदोष समय दीपदान और लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ है। इसमें यदि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बाद एक घड़ी मतलब 24 मिनट से अधिक अमावस्या हो तो पर्व दूसरे दिन मनाने में कोई संदेह नहीं है।