आवंटी को आवंटन के बाद दो साल और फिर निकाय, प्राधिकरण स्तर पर अतिरिक्त दो साल की छूट मिलती रहेगी। ड्राफ्ट पर जनता से आपत्ति-सुझाव मांगे गए हैं। वहीं मौजूदा नीति में प्रावधान है कि यदि कोई राजनैतिक दल भूमि आवंटन के बाद राष्ट्रीय स्तर का नहीं रह जाता है तो आवंटित भूमि एवं निर्मित भवन स्थानीय निकाय अपने कब्जे में ले लेगा। ड्राफ्ट में यह प्रावधान हटाना प्रस्तावित किया गया है। अभी आवंटन शर्तों व प्रावधान में छूट का अधिकार मंत्रिमंडलीय एम्पावर्ड कमेटी के पास है। कमेटी आरक्षित या डीएलसी दर से 30 प्रतिशत दर तक ही आवंटित कर सकती है, लेकिन प्रस्ताव में इसे 50% तक किया जा रहा है।
प्रोजेक्ट की डीपीआर सौंपनी होगी
आवंटित जमीन पर प्रस्तावित प्रोजेक्ट की विस्तृत रिपोर्ट सौंपनी होगी। इसमें प्रोजेक्ट के लिए न्यूनतम भूमि की आवश्यकता, प्रस्तावित निर्माण का विवरण, वित्तीय लागत का अनुमान और भवन का किस उद्देश्य के लिए उपयोग करेंगे, इन सभी की स्पष्ट जानकारी देनी होगी। प्रोजेक्ट पूरा करने का निर्धारित समय भी बताना होगा। संस्थान को यह स्पष्ट करना होगा कि भूमि आवंटन से परियोजना का लाभ समाज के किन वर्गों को किस तरह से होगा। अभी तक आवंटित भूमि की राशि अधिकतम 10 माह में जमा कराने का प्रावधान है, जिसे घटाकर 30 दिन किया जा रहा है। भूमि आवंटन के लिए आवेदन शुल्क 5 हजार से बढ़ाकर 25 हजार रुपए होगा।